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________________ होगा ही नहीं है। अच्छा, तो साथ साथ तेरापंथी यह भी वो मानते होंगे न, कि जैसे 'नाक' को मुंह' कहा जाता है, वैसे 'आंख' और 'कान' को भी मूंह कहना चाहिये । और यदि ऐसे मानोगे तब तो, सुनानेके समय 'मुखसे सुनो' और दिखलाने के समय 'मुखसे देखो' ऐसा ही कहना पडेगा । यह भी बड़ी अजब गतिकी फिलोसॉफी निकली। तेरापंथियोंकी बुद्धिमानी को, एकधार नहीं, सहस्रवार धन्यवाद !। --- अच्छा, तेरापंथियोंकी उपर्युक्त युक्तियां भी 'शशशृंग' जैसी ही प्रतीत हुई, अब आगेकी युक्तियोंको देखिये । तेरापंथियों के मुखवस्त्राधिकारकी १९-२० कडीमें कहा है:"कर राखे वस्त्रिका, तसु तिखो उपयोग । तोपण अटकावत नहि, तसु मुख खंच प्रयोग" ॥१९॥ "तिखो नही अटकाव तसु, जतना काजस जोय।... मुख बांधे मुखवत्रिका, तोपण दोष न कोय " ॥२०॥ इन दोनों कडियों में तेरापंथीं क्या स्वीकार करते हैं, इसको पाठक जरा देखें। जरा तेरापंथी कहते हैं कि-'हाथमें मुहपत्ती रक्खे, उसमें भी कोई अटकाव नहीं है, और मूंहपर बांधे, इसमें भी दोष नहीं'। कैसी मिश्रभाषा ? । यह तो ऐसा ही कथन हुआ, जैसे 'मरीचि' ने कपिलसे कहा था:-'कविला इत्यपि इहयं पि' अर्थात् ' हे कपिल ! मेरेमें भी धर्म है, और उनमें (ऋषभदेवमें) भी धर्म है।' इसी तरह से तेरापंथी भी कहते हैं 'हम बांधते हैं, उसमें भी कोई दोष नहीं, और जो हाथमें रख करके उपयोग रखते हैं, उसमें भी कोई दोष नहीं।' लेकिन तेरापंथियोंने इस बातका कमी विचार किया है कि मरीचीको, मिश्रभाषणसे कितना भव प्रमण
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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