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________________ मातासूचके आठवें अध्ययनमें 'मल्लीकुमारी' का वृत्तान्त चला है। मल्लीकुमारीके रूप लावण्यके वृत्तान्तको सुन करके, 'जितशत्रु' वगैरह छहों राजे, उससे विवाह करनेको आए हैं। मल्लीकुमारीके पिता ' कुंभराजा' ने उन छहों राजाओंके साथमें युद्ध किया है । पश्चात् मल्लीने अपने पितासे कहा है:-' आप किसी प्रकारकी चिंता न करें, मैं उन्होंको प्रतिबोध करके ठिकाने. लाउंगी।' मल्लीकुमारीने, अपने पितासे कह करके एक धातु की रमणीय मूर्ति ऐसी बनवाई कि, जिसमें अत्यन्त दुर्गधी वाले पदार्थ भरे । तदनन्तर उन छहों राजाओंको, उस मूर्ति के पास बैठाए, और उस पुतलीका ढकना खोला । उस समय ___“तएणं ते जियसत्तूपामोक्खा तेणं अमुभेगं गंधेणं अभिभूया समाणा सरहिं २ उत्तरिझेहिं आसाई पिहेइ पिहेत्ता परंमुहा चिट्ठति ।" (पृष्ठ ८३८ ) अर्थः-वे जितशत्रु वगैरह छहों राजे, उस अशुभगंधसे अभिभूतं होते हुए और अपने अपने उत्तरासन ( दुपट्टे ) से मुंह ढांक करके पराङ्मुख हो बैठे। इसी प्रकारसे दुर्गंधके कारण ज्ञाताके नवमें अध्ययनमें जिनरिख और जिनपाल ने मूंह ढांका है, और बारहवें अध्ययनमें दुर्गधीके कारणसे ही जितशत्रु ने मूंह ढांका है। .. ____ अब पाठक विचार कर सकते हैं कि-तेरापंथियोंकी ये युक्तियां प्रसंगोचित हैं ?। जितशत्रु आदि छहों राजे, जिनरिख जिनपाल, इत्यादि ये सब गृहस्थ थे । इन्होंन दुर्गंधी आनेके कारण मुंहपर कपडा रक्खा है । मुहपत्तीका तो इन. प्रसंगोंमें नामोनिशान भी नहीं है। और यहांपर मुहपत्तीका प्रसंग भी नहीं है। क्यारे
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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