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________________ २३ - यहाँ, उनके वेबकी आलोचना करके पाठकोंका अधिक समय लेना नहीं चाहते, परन्तु इतना जरूर कहेंगे कि अगर किसी मनुष्यको पहलेही पहल तेरापंथी साधुके देखनेका सौभाग्य मिले तो वह एक दफे तो उसकी आकृति से डरे नहीं, तो स्तम्भित तो जरूरही हो जाय । अस्तु, जो कुछ हो, परन्तु इतना तो जरूरही है कि - यदि वे जैनी साधु होनेका दावा रखते हैं, तो जैनी साधुके वेषकी दृष्टिसे तो वह उनका वेष अप्रामाणिक ही है । जैन शास्त्रोंमें साधुओं को जो उपकरण रखने कहे हैं, उनकी खास मर्यादा बंधी हुई है। मरजी में आवे, वैसे रखनेको नहीं कहे । लेकिन ठीकही है कि जो बिचारे शास्त्रोंकी मर्यादाको नहीं समझते हैं, धुरंधर आचार्यों के वचनोंपर जिनको विश्वास नहीं है, और जो लोग हमेशा अपनी कपोल कल्पनासेही काम चलाना चाहते है, वे इस प्रकार अमर्यादित वस्तुओं को रख कर कुलिंगपनेको धारण करें; तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । खैर, इसपर विशेष कहनेकी आवश्यकता नहीं है । हम यहाँपर जो कुछ लिखना चाहते हैं, वह तेरापंथी साधु जो दिनभर मूँहपर मुहपत्ती बांध रखते हैं, इस विषय में है । अतएव इसी विषय पर प्रथम कुछ परामर्श करें । मुपहत्तीको मुँहपर बांधे रखना, यह व्यावहारिक दृष्टि, युक्ति और आगमप्रमाण किसी से भी सिद्ध नहीं हो सकता | क्योंकि देखिये | पहिले तो यह सोचना चाहिये कि - मुहपत्ती रक्खी किस लिये जाती है ? । इसके उत्तरमें मुहपत्तीको रखनेवाले सभी
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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