SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्बल तेरापंथियो ! कभी भगवतीसूत्रका २० वाँ शतक, आठवीं उद्देशा, पत्र १५०४ के प्रथम पृष्ठके " जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमासे ओसप्पिणीए देवाणुप्पिया णं केवइयं कालं तित्थे अणुसिज्जिस्सई ? । गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इससे ओसाप्पणीए ममं एगवीसं वाससहस्साई तित्थे अणुसिज्जिस्सइ" इस पाउको तुम्हारे पूज्य परमेश्वर (!) के मुखसे सुना या पढा भी है ?। ऊपरके पाठमें गौतमस्वामिने भगवान्से प्रश्न किया है कि-'हे भगवन् ! जंबुद्वीपमें, भरतक्षेत्रमें, इस अवसर्पिणीमें कितने काल पर्यन्त तीर्थ प्रवर्तेगा ?' भगवान्ने कहा:-'जंबूद्वीपमें, भरतक्षेत्रमें, इस अवसर्पिणीमें मेरा तीर्थ इक्कीस हजार ( २१००० ) वर्ष पर्यन्त रहेगा।' __ अब बतावें तेरापंथी, भगवान्का कथन सत्य ? कि तुम्हारा कथन सत्य ?। जब भगवानका तीर्थ ही इक्कीसहजार वर्ष पर्यन्त चलनेका है, तो फिर कैसे कहते हो कि, भीखमजी, ऋषभदेव भगवानकी तरह धर्म प्रवर्तक थे ?। -- यहाँपर तीर्थ' शब्दका अधिकस्पष्टिकरण करना समुचित होगा। ' तीर्थ' शब्दसे साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका ये चतुर्विधसंघ समझना चाहिये । क्योंकि भगवतीसूत्रके २० श० ८ उ० पत्र १५०४ में उपर्युक्त पाठसे ही संबंध रखनेवाला इस तरहका पाठ है: " तित्थं भंते ! तित्थे, तित्थंकरे तित्थे ? गोयमा ! अरहा ताव णियमं तित्थंकरे, तित्थे पुण चाउवण्णाइण्णे समणसंघे तं जहा:-समणा समणीओ सावगा सावियाओ।"
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy