SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीचमें महाप्रभावक निग्रंथ पुरुष, जैसे श्रीसोमसुंदरसूरि, श्रीमुनिसुंदरसूरि, श्रीरत्नशेखरसूरि, श्रीहेमविमलसूरि, श्रीआनंदविमलसूरि, श्रीविजयदानसूरि, श्रीहीरविजयसूरि, श्रीविजयसेनसूरि, श्रीयशोविजय उपाध्याय, एवं खरतरगच्छमें श्रीजिनभद्रसूरि, श्रीजिनचंद्रसूरि, श्रीजिनसमुद्रसूरि, श्रीजिनचंद्रसूरि, श्रीजिनसिंहसूरि और श्रीसमयसुंदर उपाध्याय वगैरह ऐसे ऐसे हुए हैं कि-जिन्होंने यवनराजाओंको प्रतिवोध करके भी जैनशासनको दीपाया है । इन्होंने अनेक तीर्थोके उद्धार करवाये हैं और अहिंसाधर्मका प्रचार भी किया है । ऊपर जिन आचार्योंके नाम दिये गये हैं, ये तो सिर्फ तपगच्छ तथा खरतरगच्छके ही आचार्योंके नाम हैं, परन्तु इनके सिवाय और भी गच्छोंमें बहुतसे प्रभावक आचार्य हुए हैं । अब तेरापंथी बतावें कि-इन ४ ४ १ वर्षों के दरमियान तुम्हार कौन कौनसे ऐसे प्रभावक पुरुष हुए, जिन्होंने परमात्माके शासनकी शोभा की हो ? । पाठकोंको यह बात स्मरणमें रखनी चाहिये कि इस तेरापंथमतको उत्पन्न हुए ही १५० वर्षों के करीब हुए हैं। अब बतलाईये, भगवान्ने तो दो हजार वर्षके बाद निर्ग्रथोंकी पूजा होनेका कहा है, तो फिर ये तुम्हारे भीखमजी तीनसो वर्षों तक किस चिडीयेखानेमें घुस रहे थे ? भगवान के कहे अनुसार तो तुम्हारे माने हुए निर्मथोंकी पूजा नहीं हुई। आगे चलकर भोखुचरित्रका लेखक लिखता है किः'वली वंकचुलीयामां वारता त्रैपना पछी विचार । अधिक पूजा अरिहंते कही श्रमणनिग्रंथनी श्रीकार' ॥३॥ लिखनेवाला भूल गया । जिस ' वग्गचूलिया' का यह प्रमाण उसने दिया है, इसी वग्गचूलियामें खास करके लिखा हुआ
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy