________________
"विध करी विचारणा, वारंवार विशेष ।. शुद्धमारग लेणी सही, परभवसामो देख " ॥ १॥
"
मनुष्य जब किसी कार्य करनेका विचार करता है, तब उसको अच्छा ही समझ करके करता है। इसी तरह भीखमजीने विचार तो शुद्धमार्गके पकडनेका किया, लेकिन यह तो न समझ सका कि - 'मैं इससे भी अधिक अंधेरेमें जानेका विचार कर रहा हूँ । ढूंढकमत में दीक्षा लेकर ' परमात्मा की मूर्तिको न मानना ' रात्रिको पानी नहीं रखना मूँह पर मुहपत्ती (कपडेका टुकडा) बांध रखना ' इत्यादि जैनशास्त्रविरुद्ध बर्ताव कर अंधेरे मार्गका स्वीकार तो किया ही था । इससे भी बुद्धिके वैपरीत्य से और अंधेरेमार्ग में जानेका विचार किया ।
,"
भीखमजीने अपने गुरु के साथनें किस तरह चर्चा की, गुरुने किस २ तरह समझाया तथा भीखमजी उसकी एक न मानकर किसतरह अलग हुआ, यह सारी बात ' तेरापंथ - मतसमीक्षा ' में दिखलादी है, इस लिये यहाँ लिख कर पुनरुक्ति के दोषमें उतरना अच्छा नहीं समझते।
भीखमजीने जब ढूंढकमत छोड़ अलग अडंगा जमानेका विचार किया, तब उसके साथ में तेरह साधु तय्यार हुए । और इसीसे इसने अपने पंथका तेरापंथ नाम रक्खा । इसने विना गुरु के ही संवत् १८१७ के आसाढ शुदि १५ के दिन केलवास (मेवाड ) में अपने आपसे दीक्षा ले ली । नये पंथको निकालते हुए ही ‘ प्रथमकवले मक्षिकापात: ' का नमूना यहाँ पर ही हुआ । क्योंकि भगवतीसूत्रके २५ वे शतक के ६ उद्देशेमें इस मतलबका पाठ है कि - 'छेदोपस्थापनीयचारित्र सिवाय गुरुके नहीं मिल सकता ।'