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________________ ro...0.0.0.00......0.0000 गौतमस्वामी गये मृगावतीके वहाँ, जब यही कहा:___ 'भगवन् ! मुखको बांधो' ऐसा श्रीविपार्कमें साफ कहा । बांधी हो, तो क्योंकर कहती ? इसमें कुछ न विचारा है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है। आवश्यकमें विधि बतलाई, काउस्सगके करनेकी, मुहपत्ती हाथमें कही है, फिर भी मुखको दे ताली। दशवकालिक और अनेकों, सूत्रोंमें बतलाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है। ८८ दंडा रखनेका दिखलाया, भगवत्यादि अनेकोंमें, फिर भी इसको नहीं रहें, करते ऐसे सब बातोंमें । बात एक भी नहीं रखी, साधका वेष लजाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है। 000 सब चीजोंको खानेवाले, बनकर बैठे बावाजी, ___ 'खमा', 'पूज्यपरमेश्वर' में, हैं और बने पूरे काजी। वासि-विदल और मधु-मक्खन भी, जो आया, सोखाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है । लाला कर, आर्याएं देती है, जो हरदम रहती हैं, १ .२२ । २ आवश्यकनियुक्किमें, काउस्सगके अधिकारमें। ३ साध्वीएं। (२१)
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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