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________________ अमेरका मन्तिमें किन्नलिखित भावनाले साथ हिलसिला' की पूर्णाहुति की जाती है कि:-.. " इस श्रेयस्कर उद्यम द्वारा, पुण्या मुझे उपजा है जो, ... माशा करता हूँ मैं, उससे मिथ्याविभ्रमका लय हो । और इसीसे भविजन पाओ शिषपदके अविचल पथको, रागद्वेष-विभाव-तिमिरसे कोई भी अन्धा न बनो" ॥१॥ " देवें सर्व मनुष्य, दान दिलसे दुःखी तथा दीनको, पीडा-विहलका पालन करें, रक्खें दया भावको "। आशीर्वाद यही प्रदान करके, सद्भावनासे भरे, 'शिक्षा' पुस्तकका समापन यही विद्या विनोदी करे ॥२॥ भपानामुफ्काराय हितशिक्षामिमी व्यधात् । धर्माचार्यपदोपासी श्रीविद्याविजयो मुनिः ॥३॥ समाप्तः
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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