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१४० प्यार पाठक, यहाँतक तो हमने तेरापंथियोंकी ही युक्तियाँको तथा वे सूत्रोंके जिन पाठोंको आगे करते हैं, उन्हींपर विचार किया । अब हम अन्तमें अनुकंपाकी पुष्टिके और कतिपय प्रमाण लिख कर इसको समाप्त करेंगे।
ठाणांगसूत्रके दशवें ठाणे के पाठको देख लीजिये । ठाणांगसूत्रके दशवें ठाणेमें दश प्रकारके दान दिखलाए हैं। वे दान
' अणुकंपा संगहे चैव भयाकालुणिए ति य । - लज्जाये गारवेणं च अधम्मे पुण सत्तमे ॥ १ ॥
धम्मे य अट्ठमे वुत्ते काहिई य कयं ति य"। १ अनुकंपादान, २ संग्रहदान, ३ भयदान, ४ कारुण्यदान (शोकदान), ५ लज्जादान, ६ गौरवदान, ७ अधर्मदान, ८ धर्मदान, ९ करिष्यतिदान और १० कृतदान ।
इन दश प्रकारके दानोंमें सबसे प्रथम ' अनुकंपा' दानको रक्खा गया है । इस अनुकंपा दानका स्पष्टीकरण करते हुए टीकाकार, भगवान भी कहते हैं कि - ___" अनुकंपया कृपया दानं दीनानाथविषयमनुकंपादानम् , अथवा अनुकंपातो यद्दानं तदनुकंपादानम् । "
अर्थात् अनुकंपासे--कृपासे दीन-अनाथ-संबंधि जो दान है, उसको अथवा दयासे जो दिया जाता है, वह अनुकंपा दान है।
फिर येही टीकाकार श्रीउमास्वातिवाचकजीके शब्दोंमे भी कहते हैं कि:"कृपणेऽनाथदरिद्रे व्यसनप्राप्ते च रोगशोकहते । यहीयते कृपाशंदनुकंपा तद्भवेद्दानम्" ॥१॥