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________________ बंधावे और बांधने वालेको अच्छा जाने, तथा छोडे छोडावे और छोडने वालेको अच्छा जाने उसको चौमासी प्रायश्चित्त आवे ।" उपर्युक्त पाठमेंसे तो " बांधे और बांधनेवालेको सहायता करे, छेडे और छोडनेवालेको सहायता करे उसको चौमासी प्रायश्चित्त आवे'' यही अर्थ निकलता है। यदि इस अर्थपर तेरापंथियोंने खयाल रक्खा होता, तो उन्हें मालुा हो जाता कि-साधुके लिये ऐसा प्रसंग कब उपस्थित हो सकता है ?। क्योंकि-साधु गृहस्थसंबंधि समस्त कार्योंसे पृथक् हो गये हैं । अतएव उन्हें न किसी त्रस जाति ( गाय-भैंस वगैरह ) के बांधने छोडनेका काम पडता है, और न उनके पास में तृग, मुञ्ज, काट, चाम, वेत्र, वगैरह के बंधन ( रस्सीएं ) ही रहते हैं । फिर भी ऐसे प्रसंगमें प्रायश्चित्त क्यों कहा ? । इसके लिये ऐसा प्रसंग खोजना पडेगा और वह यही प्रसंग मालूम होता है कि-जैसे, ___ कोई साधु गृहस्थके घरपर भिक्षाके लिये चला गया हो। उस समय साधु भिक्षाकी लालचसे, यह विचार करे कि-'इसके गाय-भैसको बाँयूँ तो यह मुझको अच्छी तरह भोजन देगा।' ऐसा विचार करके उसके गाय भैंसको बांधे, अथवा गृहस्थ बांधता हो तो सहायता करे, एवं छोडे अथवा छोडता हो तो सहायता करे। बस ऐसे प्रसंगोंके लिये चौमासी प्रायश्चित्त कहा है। और इसी लिये, ' कोलुगपडियाए ' पाठ दिया है, जिसका अर्थ होता है ' कारुण्यप्रतिज्ञासे ।' अर्थात् यहाँपर साधुके मनका यह अभिप्राय है कि यदि मैं इसका काम करुंगा, तो मेरे पर अनुकंपा लाकर अच्छी तरह आहार देगा। लेकिन इससे, अनुकंपाका निषेध नहीं होता है । यदि यह प्रसंग अनुकंपाके लिये होता, अर्थात् साधुके पशुओंको बांधने-छोडनेमें अनुकंपा
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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