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________________ ११८ और यदि तेरापंथियोंका यही सिद्धान्त सत्य हो कि- एकेन्द्रिय जीवोंकी विराधनाके भयसे पंचेन्द्रिय जीवोंको नहीं बचाने चाहिये।' तो हम तेरापंथियोंसे पूछते हैं कि-मानलीजिये कि-तुम्हारी कोई साध्वी गोचरी लेनेको जा रही है । उस समय एक सांढ उसके पीछे पडा । और किसी तेरापंथीने अपनी दुकान परसे उसको देखा भी। अब बतलाइये, वह तेरापंथी, अपनी दुकान पर बैठे २ देखता ही रहेगा या कि दौड करके उस साध्वीको बचानेका प्रयत्न करेगा ? क्या दुकानसे उठ कर उस साध्वीको बचावेगा, तो क्या उसमें एकेन्द्रियजीवोंकी विराधना नहीं होगी ?। वैसे ही एक और दृष्टान्तको भी सुन लीजिये । आपके दो साधु, जिनमें एक गुरु है और एक चेला, कहीं पर जा रहे हैं । गुरुजीके सामने एक सांप काटनेके लिये धस आया । अब कहिये, दूर पर रहा हुआ चेला, दौड करके गुरुजीकी जानको बचानेका प्रयत्न करेगा या नहीं ?। यदि दौड करके बचावेगा. तो उसमें जीव विराधना जरूर ही होगी। और यह तो कह ही नहीं सकते हो कि-चेला, गुरुको बचानेका प्रयत्न न करे । क्यों कि-ऐसा करनेसे तो भक्ति भंगका महान् पाप लगेगा। ___ तब यह कहना ही होगा कि-संसारमें ऐसा कोई मनुष्य ही नहीं है कि-जीव विराधना विना किये ही, जीक्को वर्तमान दुःखसे बचाता हो । तो फिर ऐसी झूठी कल्पनाएं करके निर्दयताको क्यों बढाना चाहिये । हां, एक बात जरूर है कि, प्रत्येक कार्यमें मनुष्यको लाभालाभ और अधिकार अवश्य देखना चाहिये । और उसको देख करके ही कार्यमें प्रवृत्ति करनी चाहिये । अस्तु, अब आगे चलिये । इसी पांचवीं ढालमें, राजाश्रेणिकने जो अपारी पटह बजवाया था, उसका भी उल्लेख किया गया है ।
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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