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________________ माताके भी समस्त दोहद पूरे किये जाते हैं, क्या यह भी जिनाज्ञा बाहर है ! कभी नहीं। दोहदोंके पूरे करनेकी बात तो दूर रही परन्तु उत्तम और धर्मज्ञ पुरुषोंका तो यही कर्तव्य दिखलाया है कि: "पितुर्मातुः शिशूनां च, गर्भिणीद्धरोगिणाम् । प्रथमं भोजनं दत्ता, स्वयं भोक्तव्यमुत्तमैः" ॥१॥ (धर्मसंग्रह, पृष्ठ २०६) अर्थात्--पिता, माता, बालक, गर्भिणी, वृद्ध और रोगी, इन्होंको पहिले भोजन करा करके, पश्चात् उत्तम पुरुषोंने स्वयं भोजन करना चाहिये। इतना ही नहीं:-- "चतुष्पदानां सर्वेषां, धृतानां च तथा नृणाम् । चिन्तां विधाय धर्मज्ञः, स्वयं भुञ्जीत नान्यथा " ॥२॥ (धर्मसंग्रह, प० २०६) अर्थत्-धर्मज्ञपुरुष, समस्त पशुओंकी, और अपने आश्रित मनुष्योंकी चिन्ताकरनेके पश्चात् स्वयं भोजन करें। अब विचारनेकी बात है, जब उत्तम और धर्मज्ञ गृहस्थ पुरुषोंके यहाँतक कर्तव्य दिखला दिये, तो फिर अभयकुमार जैसा धर्मात्मापुरुष, अपनी माताके दोहदको पूरा करनेके लिये भक्ति स्वरूपा करे, इसमें आश्चर्यकी बात ही क्या है ?। यह समझनेकी बात है कि-अभयकुमारका यह उचित ही कर्तव्य था । और इस प्रकार जो उचित नहीं करता है, वह लाघनीय भी नहीं गिना जाता है। देखिये, इसके लिये
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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