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________________ अर्हन्त्रकको तो यहाँपर यह भी प्रसंग नहीं था। यहाँ तो केवल देवताका उपद्रव, अर्हनकको धर्मसे चूकानेके लिये था । और अन्नक इस बातको अच्छी तरह जानता भी था । तो फिर क्यों धर्मसे चूके, और प्रार्थना करे । दूसरा उल्लेख है नमिरायऋषिका । नमिराजा, अपनी मिथिला नगरी-राज-पाट-अन्तेउर वगैरह सबको छोड कर साधु हो गया । इसको संसारके किसी पदार्थपर अब ममत्व नहीं है । राजाके साधु हो जानेसे, सारी नगरी के लोग रुदन कर रहे हैं, इनको देख, नमिरायकी दृढताकी परीक्षा करनेके लिये इन्द्र, ब्राह्मणके वेषमें नमिरायऋषिके पास आया। इन्द्रने इसको चलायमान करने के लिये कहा है:" एस अग्गी य वाउ य एयं डज्झइ मंदिरं । भयवं अंतेउरं तेणं कीसाणं नावपेक्खहि " ॥१२॥ " एयमढे निसामित्ता हेऊकारणचोईओ। तओ नमीरायरिसी देविंदं इणमज्जवी" ॥१३॥ " सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नत्थि किंचणं । महिलाए डज्झमाणीए न मे डज्झइ किंचणं" ॥१४॥ " चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खूणो पियं न विज्जए किंचि अप्पियपि न विज्जए " ॥१५॥ . (उत्तराध्ययन सूत्र, पृष्ठ-२८३-२८४) अर्थात्- हे भगवन् ! यह अग्नि और वायु दिख रहे हैं । यह मंदिर जल रहा है । अंतेउर जल रहा है । आप सामने क्यों नहीं देखते हैं।'
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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