________________
शंकाओं का समाधान
माल में ) जैनाचार्य हरिदत्तसूरि व देवगुप्त का होना पाया जाता है । आचार्य श्री ने तोरमाण को उपदेश देकर एक जैन मन्दिर बनाया इस से ज्ञात होता है कि हूणों के समय में भिन्नमाल में जैनों की अच्छी आबादी रही होगी ।
विक्रम की आठवीं शताब्दी ' के रचयिता निशीथ चूरिंग में भिन्नमाल का उल्लेख इस प्रकार करते है । तद्यथा :"रूप्यमयं जहा भिल्लमाले वम्मलतो" ।।
( वि० सं० ७३३ ) निशीथचूर्णि १०-२२५
'सिवचन्दगणी अहमय हरो ति सो एत्थ आगओ देसा सिरि भिल्लमाल नयरम्मि संहियो कप्परुक्खो व" । ( वि० सं० ८३५ ) - कुवलय माला
९९२ ) उपमति० कथा
पर पट्टावलियों से
सत्रेयं तेनत कथा कविना निःशेष गुण गणाधरे ॥ श्री भिल्लमाल नगरे, गदिताऽग्रिममण्डपस्थाने ॥ ( वि० सं० इनके अतिरिक्त पं० हीरालाल हंसराज ने जैन गोत्र संग्रह नामक पुस्तक में वि० सं० २०२ में भिन्नमाल पर अजितसिंह नाम के राजा का राज्य होना लिखा है । उस समय मीर मामोची ने भिन्नमाल पर आक्रमण कर उसे लूटा । इसके पूर्व भिन्नमाल में किसका राज था इसके लिये कोई ऐतिहासिक साधन उपलब्ध नहीं । ऊपर बतलाये वि० सं० के ४०० चारसौ वर्ष पूर्व भिन्नमाल पर राजा भीमसेन का राज्य होना पाया जाता है । भिन्नमाल की प्राचीनता के पश्चात् अब यह बतलाना है कि कई लोगों ने आबू व किराडू के उत्पलदेव को परमार और उपकेशपुर बसानेवाले भिन्नमाल के राजकुमार उत्पलदेव को एक ही मानने की भूल की है । पर जब श्रोसवाल जाति की उत्पत्ति का समय ऐतिहासिक प्रमाणों से विक्रम को पांचवी शताब्दी सिद्ध होत] हैं । तब आबू के उत्पलदेव कुमार ने किसी कारण से यदि श्रोशियों के प्रतिहारों का आश्रय लिया और अनन्तर वह वापिस अपने नगर को चला गया इस हालत में उत्पलदेव परमारने विक्रम की
!