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ओसवालों की उत्पत्ति
बनाए यह कथन कपोल कल्पित है, इसमें सत्यांश बिलकुल नहीं है । जैन पावली और जैन ग्रंथों में आसवंश स्थापना का समय महावीर निर्वाण से ७० वर्ष बाद ही लिखा मिलता है जो वास्तविक मालूम होता है।
"बाबू जैन मन्दिरों के निर्माता पृष्ट २-४" ३७–तपागच्छीय प्राचीन पट्टावली में लिखा है कि वीरात ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने श्रोसा नगरी में श्रोसवंश की स्थापना की।
३८-अंचलगच्छ पट्टावली में उल्लेख मिलता है कि प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर से ७० वर्ष उकेशपुर में उकेशवंश की स्थापना की।
३९-कोरंटगच्छ पट्टावली में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि ने आएस नगरी में श्रोसवाल बनाए ।
४०-खरतर गच्छ पट्टावली में लिखा है कि श्रोशियों नगरी में ' वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल बनाए । ___४१-नागपुरिया तपागच्छ पट्टावली में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में उपकेशवंश की स्थापना की।
४२-उपकेश गच्छ पट्टावली में विस्तृत रूप से लिखा है कि धीरात् ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने महाजन संघ की स्थापना की।
४३-कुलगुरुओं की प्रामाणिक वंशावलियों में यह लिखा मिलता है कि वीरात् ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में क्षत्रियादि अजैनों को जैन बनाके महाजन सङ्घ की स्थापना की, आगे चलकर उन्हीं का नाम उपकेशवंश और ओसवाल हुआ है। ___४४-वर्तमान समय की पत्र पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं और इनमें जो ओसवाल जाति की उत्पत्ति विषयक लेख निकलते हैं उन सब में यही उल्लेख मिलता है कि वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में महाजन वंश की स्थापना की जिन्हें आज हम ओसवाल कहते हैं ।
इस तरह पूर्वोक्त प्राचीन एवं अर्वाचीन प्रमाणों से मैंने उपकेशवंश । (श्रोसवाल ) की उत्पत्ति का समय वीरात ७० वर्षे अर्थात् विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व का निर्णय किया है और मेरे इन निर्णय में यदि कोई