SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ ओसवालों की उत्पत्ति इसका समय हम ऊपर लिख आये हैं। अब रहा ओसवाल नाम का निर्णय सो यह तो स्वयं सिद्ध है कि ओसवाल नाम उपकेश वंश का अपभ्रंश है और इसका समय विक्रम की बारहवीं सदी के आसपास का है, इसका मूल कारण उपकेशपुर नगर का अपभ्रंश "ओशियों” होना है। इस विषय में विशेष प्रमाणों की कोई आवश्यकता नहीं है । कारण प्राचीन ग्रंथों और शिलालेखों में इस नगर का नाम उपकेशपुर और इस जाति का नाम उपकेश वंश मिलता है, और इसके अस्तित्व के ऐतिहासिक प्रमाण विक्रम की पाँचवी शताब्दी तक के मिल सकते हैं। कई एक लोगों का यह भी ख्याल है कि जैन ग्रंथकारों के पिछले समय में लिखे हुए ग्रंथों में सत्यता का अंश बहुत कम और अतिशयोक्ति अत्यधिक है। इसलिए ऐतिहासिक प्रमाणों में इनका कोई विश्वास नहीं, पर हम इस कथन से सोश सहमत नहीं है। कारण पूर्वाचार्यों के प्रथों में अतिशयोक्ति भले ही हो पर बे सर्वथा निराधार भी नहीं है। मूल घटना और प्रथ निर्माण के बीच में कितने ही समय का अन्तर है पर इससे वे ग्रंथ सर्वथा निर्मूल नहीं हो सकते । क्योंकि उन्होंने जो कुछ लिखा है वह भी किसी न किसी आधार से ही लिखा है। और उनका लिखना प्रायः सत्य ही है। यदि हम पंथों पर कोई विश्वास न रक्खें तब तो हमारा इतिहास नितान्त अंधेरे में ही रहेगा। अतः यदि किसी लेख में कोई तरह को त्रुटि हो तो उसका संशोधन करना हमारा कर्तव्य है। किन्तु उसका एकदम बहिष्कार करना हमारे लिए बहुत हानिकारक है। आज मैं उपकेश वंश ( ओसवाल ) की उत्पत्ति के कतिपय प्रमाणों का संग्रह कर विद्वद् समाज की सेवा में उपस्थित करता हूँ। यद्यपि एक विशाल वंश के लिए मेरे चुने ये प्रमाण पर्याप्त तो नहीं होंगे, फिर भी आज तक जो ओसवालोत्पत्ति का इतिहास अन्धकार में था उस पर जरूर (नहीं की अपेक्षा थोड़े कुछ प्रमाण भी ) अच्छा प्रकाश डालेंगे। और यह बात मानने में भी किसी तरह का कोई सन्देह नहीं रहेगा कि मूल महाजन वंश की उत्पत्ति विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व में हुई थी, और उपकेश वंश एवं श्रोसवाल वंश ये उप्ती महाजन वंश के कालक्रम से पड़े उपनाम हैं। अस्तु ! आगे ज्यों ज्यों शौध होती रहेगी त्यों त्यों
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy