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शंकात्रों का समाधान
करना है कि अन्तिम रत्नप्रभसूरिजी के लिए आज तक भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि उन्होंने सब से प्रथम ओसवालवंश की स्थापना की है-यह प्रमाणित होजाय । परन्तु आद्य रत्नप्रभसूरि के विषय में जो प्रमाण मिले हैं उनमें से उपकेशगच्छ पट्टावली का प्रमाण तो हम ऊपर लिख आए हैं और " नाभि नन्दन जिनोद्धार " नामक प्रन्थ तथा उपकेशगच्छ चरित्रादि प्रन्थों में भी इस विषय को प्रमाणित करने के अनेक प्रमाण मिले हैं कि आचार्य रत्नप्रभसूरि वीरात् (महावीर से) ७० वर्ष बाद उपकेशपुर में आए, और महाजनवंश (श्रोसवालवंश) की स्थापना की । अतः ओसवालवंश के संस्थापक श्राद्याचार्य रत्नप्रभसूरि को ही मानना युक्ति-युक्त और प्रमाण सिद्ध है।
शंका नं०४-ओसवाल बनाने के समय श्रोशियों में महावीर का मन्दिर बना, उसी मन्दिर में एक प्राचीन शिलालेख लगा हुआ है उसका समय वि० सं० १०१३ का है इससे अनुमान हो सकता है कि श्रोसवालोत्पत्ति का समय दशवीं, ग्यारहवीं शताब्दी का ही होना चाहिए ?
समाधान यह शंका केवल लेख का संवत् देख के ही की गई है न कि सारा लेख पढ़ के, यदि सम्पूर्ण लेख को पढ़ लिया होता तो इस शंका को स्थान ही नहीं मिलता। देखिये श्रीमान् बा० पूर्णचन्द्रजी संपादित शिलालेख संग्रह प्रथम खण्ड लेखांक ७८८ में प्रस्तुत शिला. लेख यों का यों मुद्रित होचुका है, यदि पहिले. उस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ लिया होता तो यह स्वयं स्पष्ट होजाता कि वह लेख न तो ओसवालों की उत्पत्ति का है, और न महावीर के मन्दिर की मूल प्रतिष्ठा का है। इस लेख से तो उल्टा ओशियों का प्राचीनत्वसिद्ध होता है। कारण इस लेख में तो ओशियों में प्रतिहारों का राज होना लिखा है जिसमें प्रतिहार वत्सराज की वहुत प्रशंसा लिखी है, यदि इस लेख के पूर्व ओशियों वत्सराज प्रतिहार के अधिकार में रही है
और वत्सराज का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी का माना जाता है तो उस समय उपकेशपुर (ओशियों ) उल्टा एक ऐश्वर्य शाली नगर था यह सिद्ध होता है-जिसका सबल प्रमाण यह शिलालेख है और यह इस नगर की प्राचीनता बतलाता है। ,