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. जैन राजाओं का इतिहास जयादि का संघ निकाल कर जीवन सफल किया। इनका समय विक्रम को दूसरी शताब्दी है।
"प्रभाविक चारित्र" . (३६) विलासपुर नगर का राजा प्रजापति-जैनराजा
......'राजा प्रजापति आचार्य श्रमणसिंह का परम भक्त था । इनका समय पादलिप्त सूरि के समकालीन है।
____"प्रभाविक चरित्र" (३७) मानखेट का राजा कृष्णराज-जैनराजा
महाराजा कृष्णराज आचार्य पादलिप्त सूरि का परम भक्त था। शत्रुजय की यात्रा में यह राजा आचार्य श्री की सेवा में था।
.. "प्रभाविक चारित्र" (३८) गुड़ शस्त्रपुर का नृपति-जैन राजा - आचार्य खपटसूरि एक समय श्री संघ की अाग्रह पूर्वक विनती से गुड़शस्त्रपुर में पधारे। वहां पर एक व्यन्तर नगर में उपद्रव कर रहा था। सूरिजी ने उसे मंत्र के जरिये वस में कर संघ उपद्रव मिटा के शान्ति स्थापन करो। वहां के नपंति को भी प्रतिबोध कर जैनधर्मोपासक बनाया। इनका समय विक्रम की दूसरी शताब्दी का माना जाता है।
"प्रभाविक चरित्र" (88) पाटलीपुर का दाहड़राज-जैन राजा - पाटलीपुर में मिथ्यादृष्टि दहाड़ नामक राजा राज करता