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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
आपको अपनी-मान्यता मिथ्या मालूम हुई और भगवान् वीर के सिद्धान्त को स्वीकार कर जैन दीक्षा ग्रहण कर ली।
“भगवती सूत्र" (५२) राजा वीरांग (५३) राजा वीरजस इन दोनों नृपतियों ने भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर मोक्षपद को प्राप्त किया।
"ठाणायांग सूत्र ठा०८” (५४) पावापुरी के राजा हस्तपाल जैनधर्म के कट्टर प्रचारक थे-जिन्होंने भगवान महावीर को आग्रह पूर्वक विनती कर अन्तिम चातुर्मास अपने यहाँ कराया और उसी चातुर्मास में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ।
"कल्पसूत्र" उपरोक्त राजाओं के अलावा महाराज प्रशन्नजीत, श्रेणिक (बिम्नसार ), सम्राट् कोणक (अजात शत्रु) और उदाई राजा भगवान महावीर प्रभु के परम भक्त थे जिन्होंने पाश्चात्य देशों में भी जैनधर्म का प्रचूरता से प्रचार किया जिन्हों का इतिहास हम पहिले भाग में लिख आए हैं और छोटे बड़े अनेक राजा भगवान् महावीर प्रभु के उपासक थे, परन्तु हमारी शोध एवं खोज में जितने नृपतियों का इतिहास मिला है उसको ही यहाँ संक्षिप में उल्लेख किया है, जिसका कारण इस समय जनता को बड़े ग्रन्थ पढ़ने की अरूचि, मगज की कमजोरी, समय का अभाव और न इतिहास से इतना प्रेम है इसलिये यह छोटे छोटे ट्रेक्ट संक्षेप में ही लिख कर सर्वसाधारण के हितार्थ मुद्रित कराया है।