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जैन राजाओं का इतिहास .. कुदरत का यह एक अटल नियम है कि प्रत्येक पदार्थ की उन्नति और अवनीति अवश्य हुआ करती है, भगवान महावीर प्रभु के पूर्व भारत में यज्ञवादियों का खूब जोर बढ़ रहा था, अश्वमेद-गजमेद, नरमेद, अजामेदादि यज्ञ के नाम पर असंख्य निरपराधी मूक प्राणियों के बलीदान से रक्त की नदियां बह रही थो, इस अशान्ति ने जनता में त्राही त्राही मचा दी थी। वर्ण जाति उपजाति मत पंथ के कीचड़ में फंस कर जनता अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही थी, उच्च नीच का जहरीला विष सर्वत्र उगला जा रहा था, दुराचार की भट्टिये सर्वत्र धधक रही थी, नैतिक, सामाजिक, और धार्मिक, पतन अपनी चरम सीमा तक पहुँच चुका था, जनता एक ऐसे महापुरुष की प्रतिक्षा कर रही थी कि वे उन उलझनों को शान्ति पूर्वक सुलझा के शान्ति स्थापित करें।
रेवतान्दो जिनो नेमियुगादि विमला चले । ऋषीणामाश्रमा देवमुक्ति मार्गस्य कारणम् ॥ १ ॥
( महाभारत) अष्ठ षष्टिषु तीथषु यात्रायां यत्फलं भवेत् । आदिनाथस्य देवस्य स्मरणोनापि तद्भवेत् ॥
। (शिवपुराण) मरुदेवि च नाभिश्चभरतेः कुल सत्तमः । अष्टमोमरुदेव्यां तु नाभे जति उरुक्रमः ।। दर्शयन वत्मवीराणं सुरासुर नमस्कृतः । नीति त्रितयकर्त्तायो युगादौ प्रथमोजिनः ।।
( मनुस्मृति)