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[ ११ ] शान्ति-गप्पों को तो न आप मानते हैं नमैं मानता हूँ पर अनुमान
प्रमाण और साधारण ज्ञानवाले यह अवश्य मानते हैं कि पुत्र पिता से ही उत्पन्न होता है इसलिए लक्षमणसिंह का पिता मानना अनुमान प्रमाण से सिद्ध है अतएव हम कह सकते हैं कि प्रत्यक्ष प्रमाण वालों के दो नेत्र हैं कि वह देखी हुई वस्तु को माने पर अनुमान प्रमाण वाले के चार नेत्र हुआ करते हैं कि वे देखी हुई वस्तु माने और अनुमान से भूत
भविष्य की वस्तु को भी अनुभव से जान सके । कान्ति-प्रत्यक्ष प्रमाण में असत्यता का अंश नहीं होता है तब
श्रागम और अनुमान प्रमाण में सत्यता का अंश बहुत
कम होता है। शान्ति-प्रत्यक्ष में केवल सत्यता और अनुमान में असत्यता
कहना मात्र पक्षपातियों का ही काम है, हम देखते हैं कि इतिहास प्रमाण वाले भी कई वख्त ऐसे चक्र में पड़ जाते हैं कि उनको अनेक बार अपना इतिहास बदलना पड़ता है और एक दूसरे पर टीका टिप्पणीएं करते हैं कारण कि. ये अनुमान और आगम प्रमाणों को अनादर की दृष्टि से। देखते हैं पर अाखिर तो उनको ही अनुमान व आगम
प्रमाणों का सहयोग खोजना पड़ता है। कान्ति-आपका भागम प्रमाण ऋषभदेव को प्रथम तीर्थंकर और
उनका शरीर और श्रायु इतना बड़ा मानते हैं और अनुमान प्रमाण उस पर सत्यता का सिक्का मारता है पर हम प्रत्यक्ष
प्रमाण वाले उनको ऐतिहासिक पुरुष कभी नहीं मानते हैं। शान्ति-आपकी तो हम बात ही क्यों करें कि आप अपनी दोन