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' द्रव्यसंग्रह ' नामक ग्रन्थ भी आचार्य नेमिचन्द्रका बनाया हुआ : माना जाता है; परन्तु जैसा कि बाबू जुगलकिशोरजीने प्रकट किया है. जान पड़ता है कि द्रव्यसंग्रहके कर्ता इनसे भिन्न कोई दूसरे ही आचार्य थे । क्योंकि द्रव्यसंग्रहके कर्ताने भावास्रवके भदोंमें प्रमादका भी वर्णन किया है और अविरत के पाँच तथा कषायके चार भेद ग्रहण किये हैं; * परन्तु गोम्मटसारके कर्ताने प्रमादको भावास्रवके भेदोंमें नहीं माना और अविरतके दूसरे ही प्रकारके बारह तथा कषायके पच्चीस भेद स्वीकार किये हैं x यदि दोनोंके कर्ता एक होते, तो उनके कथनमें यह : विभिन्नता न होती ।
त्रिलोकसार-व्याख्याके कर्त्ता श्रीमाधवचन्द्र त्रैविद्यदेव हैं जैसा कि टीकाकी उपान्त्य गाथासे मालूम होता है । आचार्य नेमिचन्द्र के ये प्रधान शिष्य मालूम होते हैं । मूल ग्रन्थ में भी इनकी बनाई हुई कई गाथायें सम्मिलित हैं और वे मूलकर्त्ताकी आज्ञानुसार शामिल की गई हैं । गोम्मटसारमें भी इनकी कई गाथायें संग्रह की गई हैं, जो संस्कृत टीकाकी उत्थानिकासे मालूम होती हैं । संस्कृत गद्यरूप क्षपणासार भी - जो कि लब्धिसारमें शामिल हैं - इन्हीं माधवचन्द्रका बनाया हुआ है । त्रैवियदेव इनकी पदवी थी । इससे मालूम होता है, कि ये भी अच्छे विद्वान थे । इनके बनाये हुए और किसी ग्रन्थका हमें परिचय नहीं है ।
नाथूराम प्रेमी ।
चन्दाबाड़ी, बम्बई |
वैशाख शुक्ल १३ सं० १९७५ वि० ।
* मिच्छत्ताविरदपमादजोगकोहादओ थ विष्णेया ।
पण पण पणदह तिय चदु कमसो भेदा दु पुत्रस्स ॥ ३० ॥
— द्रव्यसंग्रह |
. x मिच्छत्तमविरमगं कसायजोगा य आसवा होंति ।
पणबारस पणसिं पण्णरसा होंति
तब्भेया ॥ ७८६ ॥
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- कर्मकाण्ड |