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अण्ण ' भी था । ये बड़े शूर और पराक्रमी थे । गोविन्दराज, बेकडुराज आदि अनेक राजाओंको इन्होंने पराजित किया था, इस लिए इन्हें समरधुरन्धर, वीरमार्तण्ड, रणरंगसिंह, वैरिकुलकालदण्ड, सगरपरशुराम, प्रतिपक्षराक्षस आदि अनेक उपनाम प्राप्त थे । जैनधर्मके ये बहुत बड़े श्रद्धालु और विद्वान थे, इस कारण जैन विद्वानोंने इन्हें सम्यक्त्वरत्नाकर, शौचाभरण, सत्ययुधिष्ठिर, गुणरत्नभूषण, आदि अनेक प्रशंसासूचक पद दिये थे । गोम्मटेशकी प्रतिमाके कारण इनकी इतनी प्रसिद्धि हुई थी कि इनका नाम ही ' गोम्मटराय ' पड़ गया था | नेमिचन्द्र स्वामीने इन्हें कई स्थानोंमें इसी नाम से स्मरण किया है । ये अजितसेन नामक आचार्य के शिष्य थे । यथा
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जम्हि गुणा विस्संता गणहरदेवादि इड्डिपत्ताणं ।
सो अजियसेणणाहो जस्स गुरू जयउ सो राओ ॥ ९६६ ॥ - कर्मकाण्ड |
जीवकाण्डक़े अन्तमें भी कहा है:
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अज्जज्जसेणगुणगण समूहसंधारि अजियसेणगुरू । भुवणगुरू जस्स गुरू सो राओ गोम्मटो जयऊ ॥ इससे यह भी मालूम होता है कि अजितसेनाचार्य आर्यसेन के शिष्य थे ।
राजा राचमल्ल भी जैनधर्मका अनुयायी था और वह भी अजितसेन - को अपना गुरु मानता था । यह राजा जिस वंशका था, वह गंगवंश जैनधर्मका ही उपासक रहा है ।
चामुण्डरायपुराण, गोम्मटसारकी कर्नाटवृत्ति, और चारित्रसार * ये तीन ग्रन्थ चामुण्डरायके बनाये हुए प्रसिद्ध हैं । इनमेंसे पहले दो कनड़ी भाषामें और पिछला संस्कृत में है । इससे मालूम होता है कि यह ग्रन्थ इसी ग्रन्थमालामें प्रकाशित हो चुका है ।
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