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भूमिका ।
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प्रस्तुत पुस्तकना रचयिता कलिकालसर्वज्ञ, शब्दमहोदधि, स्याद्वादमूर्ति, कुमारपालप्रतिबोधक आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमचन्द्राचार्य म. छे. जेओश्रीए पोतानी असाधारण प्रतिभाने साहित्यना अनेक क्षेत्रोमां व्हेती मूकी जैनोनी साहित्य विषयक दरिद्रताने देशपार करी दीधी हती, अरे ! केवल जैनोंनीज नहि पण सास गुजरातभरनी दरिद्रताने चूरी नाखी हती, प्रत्येक विषयोनी रचना करी जैन, अजैन प्रत्येक समाजमां, काव्यकार, व्याकरणकार, कोशकार, सूत्रकार आदि तरीकेनी परम ख्याति मेलवी छे.
आ जैनशासनना परमप्रभावक सूरीश्वरे, सिद्धराज जयसिंहनी प्रार्थनाथी जेम सारा व्याकरण प्रन्थो एकट्ठा करी सर्वांग सुंदर सिद्धहेमव्याकरण-शब्दानुशासननी रचना करी तेम परमार्हत् कुमारपालनी मागणीथी १० पर्व युक्त त्रिषष्टिशलाकापुरुष नामक प्रन्थ बनाव्यो हतो. तेना आद्यपर्वनी शरुआतमां मंगलरूपे आ अवसर्पिणीना श्री ऋषभदेवथी लइ चरम तीर्थंकर श्रीमहावीरभगवान पर्यन्त तीर्थंकरोनी चोवीश स्तुतिओ करी, जे जैन समाजमां 'सकलाई त्' ना नामथी प्रसिद्ध छे. आ अवसर्पिणीना सर्व तीर्थकरोनी आमां स्तुति होवाथी आ नाम यथार्थ छे.
जेने जैनसमाजमां पवित्र गणाता पाक्षिक, चातुर्मासिक अने सांवत्सरिक जेवा महान् पर्वोनी क्रियाओनी शरुआतमांज स्थान लीधुं, जो के आ नानी रचना छे पण असाधारण कविना हाथथी रत्रायेली होइ भावो अने अलंकारोथी भरपूर छे. प्रायः त्रिषष्टिशैला कापुरुषनी रचना पाटणमां थयेली होवी जोइए, जेथी आ 'सकलाईत्' नी पण रचना पाटणमज थइ होय एम संभवे छे.