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________________ :: प्राग्वाट इतिहास: द्वितीय सह१-वर्तमान जैन-कुलों की उत्पत्ति । २-प्राग्वाट अथवा पौरवालज्ञाति और उसके भेद । ३-राजमान्य महामंत्री सामंत । ४-कासिंद्रा के श्री शांतिनाथ-जिनालय के निर्माता श्रे० वामन। ५- अनन्य शिल्प-कलावतार अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसतिकाख्य श्री आदिनाथ-जिनालय । ६-मंत्री पृथ्वीपाल द्वारा विनिर्मित विमलवसति की हस्तिशाला । ७-व्ययकरणमंत्री जाहिल । ८-महामात्य सुकर्मा। ह-महुअकनिवासी श्रे० हांसा और उसका यशस्वी पु. श्रे० जगह । १०-श्री अर्बुदगिरितीर्थस्थ श्री विमलवसतिकाख्य चैत्यालय तथा हस्तिशाला में अन्य प्राग्वाट-बंधुओं के पुण्य-कार्य। ११-श्री अर्बुदगिरितीर्थस्थ श्री विमलवसति की संघयात्रा और कुछ प्राग्वाटज्ञातीय बंधुओं के पुण्य-कार्य । १२-श्री जैन श्रमण-संघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु । १३-श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण । १४-न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थ । १५-सिंहावलोकन । सातीय खण्ड१-न्यायोपार्जित स्वद्रव्य को मंदिर और तीर्थों के निर्माण और जीर्णोद्धार के विषयों में व्यय करके धर्म की सेवा • करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थः-सर्व श्री श्रे० पेथड़ और उसके वंशज डङ्गर और पर्वत, श्रीपाल, सहदेव, पाल्हा, धनपाल, बंभदेव के वंशज, लक्ष्मणसिंह, भ्राता हीसा और धर्मा, मण्डन और भादा, खीमसिंह और सहसा। २-श्री सिरोहीनगरस्थ श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिनालय का निर्माता कीर्तिशाली श्री संघमुख्य सं० सीपा और धर्म कर्मपरायणा उसका परिवार। ३-तीर्थ एवं मंदिरों में शा• ज्ञा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका-प्रतिमा-प्रतिष्ठादिकार्य । ४-तीर्थादि के लिए प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा की गई संघयात्रायें । ५-जैन श्रमण संघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु । ६-श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण | ७-न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा० झा० सद्गृहस्थ । ८-विभिन्न-प्रान्तों में प्रा. ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें । ६-आग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष व्यक्ति और कुल । १०-सिंहावलोकन । सिरोही (राजस्थान) और गूर्जर-काठियावाड़ का भ्रमण भीलवाड़ा से सन् १९५१ जून ४ को इतिहासकार्य के निमित्त भ्रमणार्थ निकल कर सिरोही, अर्बुदगिरितीर्थ, गिरनारतीर्थ होता हुआ प्रभासपत्तन (सोमनाथ) तक पहुँचा और वहां से लौटकर पुनः भीलवाड़ा जुलाई ८ को पाया। अजमेर-यहां दो दिन ठहरा । मुद्रण-यंत्रालयों से बातचीत की, फोटोग्राफरों से मिला । पावा-मंत्री श्री ताराचन्द्रजी पावा थे। अंतः स्टे० रामी से कोशीलाव होकर उनसे मिलने पावा गया। इसमें तीन दिन लग गये।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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