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:: प्राग्वाट-इतिहास ::
[तृतीय
शाह सुखमल विक्रम की अठारहवीं शताब्दी
- सिरोहीनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय शाह धनाजी के ये पुत्र थे। ये बड़े नीतिज्ञ, प्रतापी और वीर पुरुष थे। सिरोही के प्रतापी महाराव वैरीशाल, दुर्जनशाल और मानसिंह द्वितीय के राज्यकालों में ये सदा ऊच्चपद पर एवं इन नरेशों के प्रति विश्वासपात्र व्यक्तियों में रहे हैं । इनको सिरोही के दिवान होना कहा जाता है। जोधपुर के महाराजा अजीतसिंहजी, जो औरंगजेब के कट्टर शत्रु रहे हैं, शाह सुखमलजी के बड़े प्रशंसक थे और उनकी इन पर सदा कृपा रही । इस ही प्रकार उदयपुर के प्रतापी महाराणा जयसिंहजी के उत्तराधिकारी महाराणा अमरसिंहजी द्वितीय और संग्रामसिंहजी द्वितीय मी शाह सुखमलजी पर सदा कृपालु रहे हैं। महाराणा अमरसिंहजी ने शाह सुखमलजी पर प्रसन्न होकर उनको वि० सं० १७६३ भाद्रपद शुक्ला ११ शुक्रवार को चैछली नामक ग्राम की रु. ७००) सात सौ की जागीर प्रदान की। तत्पश्चात् महाराणा संग्रामसिंहजी द्वितीय ने प्रसन्न हो कर पुनः छछली के स्थान पर ग्राम टाईवाली की रु. १०००) एक सहस्त्र की जागीर वि० सं० १७७५ चैत्र कृष्णा ५ शुक्रवार को प्रदान की।
विक्रम की अठारहवीं शताब्दी भारत के इतिहास में मुगल-शासन के नाश के बीजारोपण के लिये प्रसिद्ध रही है। दिल्ली-सम्राट औरंगजेब की हिन्दू-विरोधी-नीति से राजस्थान के राजा अप्रसन्न होकर अपना एक सबल सुरक्षा-संघ स्व रहे थे । राजस्थान में उस समय प्रतापी राजा जोधपुर, जयपुर और उदयपुर के ही प्रधानतः प्रमुख थे। सिरोही के महाराव भी प्रतापी रहे हैं। इन सर्व राजाओं की शा० सुखमलजी पर अपार कृपा थी। सार्वभौम दिल्लीपति के विरोध में संघ बनाने वाले महापराक्रमी राजाओं की कृपा प्राप्त करनेवाले शाह सुखमलजी भी अवश्य असाधारण व्यक्ति ही होंगे। शाह सुखमलजी के वंशज शाह वनेचन्द्रजी और संतोषचन्द्रजी इस समय खुडाला नामक ग्राम में रहते हैं और उनके पास में उपरोक्त महाराणाओं के प्रदत्त ग्राम छैछली और टाईवाली
श्री एकलिंगप्रसादात - --(भाला)
सही महाराजाधिराज महाराणा श्री अमरसिंहजी आदेशातु शाह सुखमल धनारा दाव्य "य मया की वीगत रुपया" ७००) गाम छैछली परगनै गोढ़वाड़ रै जागीर राठोड़ सीरदारसीह" "रणोत थी ऊपत रुपया सात सौं ....."पी राय "रानी "देवकरण" "संवत् १७६३ वीषे भादवा सुदी ११ शुक्र
(भाला की मही) २- महाराजाधिराज महाराणा श्री संग्रामसिंघजी आदेशातु साह सुषमल सीरोहया....." दाव्य ग्रास मया कीधो वीगत टका . . १०००) गाम टाईवाड़ी ""ड"" गोड़वाड़ पुरेत जागीर रो थो... "द दापोत थी गाम छेछली रे वदले उपत रुपया १०००)
रोहे प्रवानगी पचोली वीहारीदास एवं संवत् १७७५ वर्षे चेत वदी ५ सके