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:: प्राग्वाट इतिहास ::
[ तृतीय
वर्धमान ने वि० सं० १७३६ मार्ग० शु० ३ बुधवार को भारी प्रतिष्ठोत्सव किया और उस अवसर पर उसने और उसके परिजनों ने अनेक प्रतिमायें प्रतिष्ठित करवाई । यह प्रतिष्ठोत्सव श्री शंखेश्वर-पार्श्वनाथ - जिनालय तेजपाल के द्वितीय पुत्र में मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा करवाने के हेतु आयोजित किया वर्धमान द्वारा प्रतिष्ठोत्सव. गया था । शा० वर्धमान ने अपने परिजनों के साथ, जिनमें मुख्य उसका ज्येष्ठ भ्राता शा० वस्तुपाल, कनिष्ठ भ्राता धनराज, गौड़ीदास और उसकी तृतीया स्त्री सुखमादेवी और उसका पुत्र देवचन्द थे श्री मूलनायक शंखेश्वर-पार्श्वनाथ की प्रतिमा महामहोपाध्याय श्री मेघविजयगणि के द्वारा शुभमुर्हत में प्रतिष्ठित करवाई । शा० वर्धमान को इस प्रतिमा के लेख में 'संघमुख्य' पद से अलंकृत किया गया है। इससे सिद्ध होता है
वर्धमान का स्थानीय जैनसमाज में अत्यधिक सम्मान था और वह उसके परिवार में अधिक समृद्ध और प्रतिष्ठित था ।१ अतिरिक्त इसके इस शुभ उत्सव पर उसने चौमुखा - आदिनाथ - जिनालय में भी दो प्रतिमायें प्रतिष्ठित करवाई ।
शा० वर्धमान ने श्री चौमुखा श्रादिनाथ - जिनालय की तृतीय मंजिल के चौमुखा गंभारे में तपा० भ० श्री विजयप्रभसूरि, आ० श्री विजयरत्नसूरि के निर्देश से महोपाध्याय श्री मेघविजयगणि द्वारा महिमाश्री के वचनों से सपरिकर पश्चिमाभिमुख श्री सुमतिनाथबिंब और श्रीमद् विजयराजसूरि के करकमलों से भार्या सुखमादेवी और उसके पुत्र देवचंद्र के साथ में इसी गंभारे में दक्षिणाभिमुख श्री आदिनाथ प्रतिमायें प्रतिष्ठित करवाई । २
शा० वर्धमान की तीनों स्त्रियाँ केसरदेवी, सरूपदेवी, सुखमादेवी ने भी श्री शंखेश्वर-पार्श्वनाथ - जिनालय के खेलामंडपस्थ श्री अजितनाथ की बड़ी प्रतिमा महोपाध्याय श्री मेघविजयगण द्वारा प्रतिष्ठित करवाई । तेजपाल के तृतीय पुत्र धनराज की स्त्री रूपवती (रूपी) ने भी मेघविजयगणि द्वारा श्री शंखेश्वर - पार्श्वनाथ - जिनालय के खेलामंडप के त्रालय में ऊत्तराभिमुख श्री आदिनाथ की बड़ी प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई । ३
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४ दशा ओसवालों के श्री आदीश्वर - जिनालय में इसी प्रतिष्ठोत्सव पर शा ० तेजपाल की द्वितीय स्त्री लक्ष्मीदेवी के पुत्र शा ० गौड़ीदास ने अपनी स्त्री अनरूपदेवी और पुत्र गजसिंह के साथ में श्री अजितनाथप्रतिमा को खेलामंडप में त० ग० भ० श्री विजयप्रभसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाई। इसी प्रतिष्ठोत्सव के शुभावसर पर
१- 'सा० पुजा भार्या उच्छरंगदे तत्पुत्र सा० तेजपाल भर्या चतुरंगदे तत्पुत्र सा० वस्तुपाल वर्धमान धनराज गौड़ीदास तेषु 'संघ मुख्य ' सावर्धमान नाम्ना भा० सुखमादे पुत्र चिरंजीवी देवचन्द्र प्रमुख परिवारयुतेन श्री शंखेश्वरपाश्र्वनाथबिंबं
"मेघविजयगणि प्रमुखपरिकल तैः ॥
मू० ना० प्रतिमालेख - शंखे० जिनालय २ - ' साध्वी महिमाश्री वचनात् स्वपुण्यार्थ श्री सुमतिबिंबं का० प्रतिष्ठितं सं० १७३६ व० मा० सु० ३ बुधे महाराज श्री वयरीसालजी विजयिराज्ये तपा० ग० भः श्री विजयप्रभसूरि आ० श्री विजयरत्नसूरि निर्देशात् महोपाध्याय श्री मेघविजयगणिभिः प्रतिष्ठितं सा० वर्धमानेन प्रतिष्ठापितं० ॥ चौ० जिनालय
'सा पुंजा भा० उछरंगदे तत्पुत्र सा० तेजपाल भा० चतुरंगदे तत्पुत्र सा० वर्धमान नाम्ना भाग सुखमादे तत्पुत्र देवचन्दयुतेन श्री श्रादिनाथविं का० प्र० त० ग० "विजयराजसूरिभिः ।।'
३- 'श्री तेजपाल भार्या चतुरंगदे पुत्र सा० वस्तुपाल, वर्धमान, धनराज तस्य पत्नीरूपी श्री आदिनाथबिंबं "
चौ० जिनालय ..........मेघविजयशंखे० जिनालय.
गणिभिः’
'सा' वर्धमानगृहे भार्या केसरदे सरूपदे सुखमादे नाम्नाभिः
मेघविजयगणिभिः’
शंखे० जिनालय
४ - 'सा० पुजा भार्या उछंरदे पुत्र सा० तेजपाल भार्या लखमादे पुत्र सा० गौड़ीदास नाम्ना भार्या अनरूपदे पुत्र गजसिंघयुतेन श्री. अजितनाथबिंबं का० प्र० त० भ० श्री विजयप्रभसूरिभिः '