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खस ]: विभिन्न प्रान्तों में प्राज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें-गूर्जर-काठियावाड़ और सौराष्ट्र-अहमदाबाद :[ ४६३
सुरि
प्र० वि० संवत् प्र० प्रतिमा प्र० प्राचार्य प्रा० झा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि सं० १५५३ माघ कुन्भुनाथ तपा० हेमविमल- राजपुरवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० सोढ़ा भा० कपूरी के पुत्र शु० ५ रवि०
डाह ने स्वभा० नीमादेवी, भ्रातृ कूपा भा० कमलादेवी
प्रमुख कुटुम्ब के सहित लघुभ्राता हेमराज के श्रेयोर्थ. सं० १५७१ माघ संभवनाथ
वीशलनगरवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० चहिता की स्त्री लीलीदेवी कृ० १ सोम०
के पुत्र रूपचन्द ने स्वभा० राजलदेवी, पुत्र वर्धमान मा० नाथीबाई, भटा भा० शाणीदेवी पुत्र कमलसिंह प्रमुख
कुटुम्ब के सहित स्वश्रेयोर्थ. सं० १६३२ वै० शांतिनाथ पृ० तपा० हीर- प्रा० ज्ञा० दो० श्रे० श्रीपाल के पुत्र हरजी ने. शु. ३ सोम०
विजयसूरि
श्री जगवल्लभपार्श्वनाथ-जिनालय में (नीशापोल) सं० १४५४ वै० शांतिनाथ- साधु पू० श्रीमरि प्रा० ज्ञा० श्रे० लोला स्त्री रूपादेवी पुत्र पूनमचन्द्र भा० कृ०११ रवि. पंचतीर्थी
सलखणदेवी उनके श्रेयोर्थ पुत्र रूदा ने. सं० १४६६ फा० ,
प्रा. ज्ञा. ठ० जीजी की स्त्री हीमादेवी के पुत्र ठ. कृ. ३ शुक्र०
हीराचन्द्र ने माता-पिता के श्रेयोर्थ. सं० १४७३ फा० वासुपूज्य देवचन्द्रसूरि । प्रा० ज्ञा० खेता के पुत्र टुंडा की स्त्री नातादेवी के पुत्र
आल्हा ने स्वभ्रात सामंत के स्वश्रेयोर्थ. सं० १४८७ माघ पार्श्वनाथ- आगमगच्छीय- देकावाटकवासी प्रा. ज्ञा० श्रे० सामंत की स्त्री गुरुदेवी
शु० ५ गुरु० चोवीशी हेमरत्नहरि के पुत्र मेघराज ने स्वश्रेयोर्थ. सं० १५२५ फा० आदिनाथ- तपा० लक्ष्मी- प्रा. ज्ञा० श्रे० सारंग की स्त्री चमकूदेवी के पुत्र खेतमल
शु० ७ शनि० पंचतीर्थी सागरसूरि ने स्वभा० सारंगदेवी,पुत्र हंसराजादि कुटुम्बसहित स्वश्रेयोथ. सं० १५३३ आषाढ़ शांतिनाथ सिद्धाचार्यसंता- प्रा. ज्ञा० ) तेजमल ने स्वस्नी मनीदेवी, पुत्र रूपचन्द्र शु० २ रवि०
नीय देवप्रभसूरि भा० धनीदेवी, पुत्रादि के सहित स्वश्रेयोर्थ.
श्री शांतिनाथ-जिनालय में सं० १५१२ वै० संभवनाथ तपा० हेमविमल- प्रा. ज्ञा० श्रे० सहस्रवीर ने स्वभा० अमरादेवी, पुत्र व्रजंग शु० २ शनि०
सरि प्रात् मेघराज, भ्रात संघराज स्वकुटुम्ब एवं स्वश्रेयोथे. सं० १५१६ वै० विमलनाथ तपा० रत्नशेखर- प्रा० ज्ञा० श्रे० वेलराज की स्त्री धरणदेवी के पुत्र देवरान
ने स्वभा० देवलदेवी, श्राव वानर, हलू प्रमुखकुटुम्बसहित
स्वश्रेयोर्थ. जै० धा०प्र० ले० सं० भा० १ ले० ११६२, ११६२,११८७, ११६७,१२१०, ११६८,१२२६, १२२८, १२०५, १२४३, १२४६।
सूरि