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________________ प्रस्तावना भारतवर्ष का सर्वांगीण इतिहास और उस पर ज्ञातियों का इतिहास एवं जैन इतिहास के प्रति उदासीनता बनी रहने पर प्रभाव साहित्य में धर्मग्रन्थ और इतिवृत्त ये दो पक्ष होते हैं । धर्मग्रन्थों में पागम, निगम, श्रुति, संहिता, स्मृति आदि ग्रन्थों की और इतिवृत्त में काव्य, कथा, पुराण, चरित्र, नाटक, कहानी, इतिहास आदि पुस्तकों की गणना भारत के सर्वांगीण इतिहास मानी जाती है। भारत निवृषिमार्गप्रधान देश विश्रुत रहा है, अतः यहाँ धर्मग्रन्थों का में कठिनाइयाँ सृजन ही प्रमुखतः हुआ है और काव्य, कथा, पुराण, चरित्र, नाटक, कहानी, इतिहास भी धर्मवीर, धर्मात्मा, धर्मध्वज, धर्म पर चलने वाले अवतार, तीर्थकर, संत, योगी, ऋषि, मुनियों के ही लिखे गये हैं । भारत में जब से मुसलमानों के आक्रमण होने प्रारम्भ होने लगे, तब से यवन-आक्रमणकारियों से लोहा लेनेवाले राजपुत्र राजाओं के वर्णन लिखने की प्रथा प्रचलित हुई । इस प्रथा का आदिप्रवर्तक भाट चंद वरदाई है, जिसने सर्व प्रथम दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान की ख्याति अमर करने के लिए 'पृथ्वीराज रासो' की रचना की। हम 'पृथ्वीराज रासो' को काव्य तो कहते हैं, साथ में उसको इतिहास का सर्वप्रथम ग्रन्थ भी कह सकते हैं । ___ साहित्य के धर्मग्रन्थपक्ष के विषय में यहाँ कुछ नहीं कहना है । इतिवृत्तपक्ष भी धर्म और धर्मात्मापुरुषों से ही वैसे पूर्णरूपेण प्रभावित है। ऐसे निवृत्तिमार्ग प्रधान भारत के वाङ्गमय में फिर सर्वसाधारण वर्ग, ज्ञाति, कुल-संबंधी वर्णनों का पूरा २ मिलना तो दूर यत् किंचित् भी मिल जाना आश्चर्य की वस्तु ही समझनी चाहिए। विक्रम की आठवीं शताब्दी में जैन कुलगुरुओं ने अपने २ श्रावकों के कुलों का वर्णन लिखने की प्रथा को प्रचलित किया था । मेरे अनुमान से चारणों ने एवं भट्टकवियों ने राजपुत्र कुलों एवं अन्य ज्ञातियों के कुल, वंशों के वर्णनों के लिखने की परिपाटी भी इसी समय के आस-पास प्रारंभ की होगी। इससे पहिले विशिष्ट पुरुषों, राजवंशों के ही वर्णन लिखने की प्रथा रही है। इतिवृत्तग्रंथों में इतिहास का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। काव्य, कथा, नाटक, चरित्र, कहानीपुस्तकों में कोई एक अधिनायक के पीछे कथावस्तु होती है; परन्तु इतिहास एक देश, एक राज्य, एक प्रान्त, एक ज्ञाति, एक कुल, एक वर्ग, एक दल, एक युग अथवा समय विशेष का होता है । महमूद गजनवी के आक्रमण के समय से राजपुत्र राजाओं
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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