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भरत] :: विभिन्न प्रान्तों में प्रा०मा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें-गूर्जर-काठियावाड़ और सौराष्ट्र-सोनोर : [४३६
जघराल के श्री जिनालय में प्र० वि० संवत् प्र० प्रतिमा प्राचार्य प्रा. झा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि सं० १४१५ ज्ये० पार्श्वनाथ- सागरचंद्रसरि जघरालवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० वीक्रम ने. कृ० १३ रवि० पंचतीर्थी
सांचोसण के श्री जिनालय में सं० १५३० माघ० नेमिनाथ तपा० लक्ष्मी- सांबोसणवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० जटक ने. शु० ४ शुक्र०
सागरपरि
बड़दला के श्री जिनालय में सं० १६२२ माघ० पद्मनाथ श्री हौरविजय- प्रा. ज्ञा० श्रे० धनराज, हीरजी. कु०२ बुध०
सरि
जंवूसर के श्री जिनालय में सं० १५६५ वै० सुमतिनाथ 'धर्मरत्नसरि जंबूसरवासी प्रा०ज्ञा० श्रे० शाणा की स्त्री श्रा० रहितमा ने. कृ. ३ रवि
डाभिलाग्राम के श्री जिनालय में सं० १५०६ माष चन्द्रप्रभ तपा० रनशेखस्मरि डाभिलाग्रामवाली प्रा० झा० ऋ० हाबड़, कौता, धना, शु०५ गुरु०
भोजा आदि ने.
वालींबग्राम के श्री जिनालय में सं० १५६४ ज्ये० अजितनाथ तपा लक्ष्मीसागर- वालींवग्रामवासी प्रा. ज्ञा० श्रे• वरुमा सरुमा ने. १२ शुक्र०
सरि
भरूच के श्री जिनालय में सं० १६२२ माघ अनंतनाथ हीरविजयसूरि भृगुकच्छवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० दो० लाला की स्त्री बच्छीकु०२ बुध०
देवी के पुत्र श्रे० कोका ने.
सीनोर के श्री जिनालय में सं० १७१० पौष आदिनाथ विजयसेनसरि प्रा० ज्ञा० श्राविका जीवदेवी गुजुदेवी ने स्वकुटुम्ब एवं कृ०६गुरु०
स्वश्रेयोर्थ. खं० प्रा० ० इति० ले० २१, २४, २६, २६३३,३८,५२,१।