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________________ २०. ] प्राग्वाट-तिहास: गत वर्ष मेरे यहां श्रीयुत् लोदाजी पधारे और इस इतिहास की भूमिका लिख देने का अनुरोध किया। मैंने अपनी अनधिकार और अयोग्यता का अनुभव होते हुये भी उनके प्रेमपूर्ण आग्रह को इसलिये स्वीकार किया कि इसी निमित्त से अपने अब तक के अध्ययन का परिणाम जैन विचार-धारा और अपने विचार प्रकाश में साने का कुछ सुयोग मिलेगा ही। मुझको संतोष है कि मैं अपने उन विचारों को मूर्तरूप देने को इस भूमिका के द्वारा समर्थ हुआ हूं। ____ मैं प्राग्वाट-इतिहास-प्रकाशक-समिति के इस सप्रयत्न की प्रशंसा करता हुआ उनकी सफलता की बधाई देता हैं। उन्होंने जिस धीरज और द्रव्य के सद्व्यय द्वारा इस कार्य को सुचारु रूप से संपन्न होने में दक्षता बतलाई है वह अवश्य ही अनुकरणीय है। इतिहास का कार्य कोई झटपट और खड़ेदम करना चाहे तो वह इतिहास बनेगा नहीं, किंवदन्तियों और ढकोसलों का एक संग्रहमात्र हो जावेगा । इसलिये पद-पद पर जिसके लिए साधन अपेक्षित हों, प्रमाण के बिना एक अक्षर भी लिखना कठिन हो उस इतिहास के साधनों को जुटाने, उनको सिलसिलेवार सजाने और उनमें से तथ्य को समझाने में समय लगता ही है। उतावल और अधैर्य का यह कार्य नहीं है। समिति के संचालकों ने इस कार्य की गुरुता को समझ कर उसे सफल बनाने में जो सहयोग दिया है यह बहुत ही सराहनीय है। श्रीयुत् लोढ़ाजी के प्रेमपूर्ण आग्रह से मुझे यह भूमिका लिखने का सुयोग प्राप्त हुआ, इसलिये मैं उनको मी धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। उनकी काव्य-प्रतिभा के साथ सत्य की जिज्ञासा और इतिहास की रुचि दिनोंदिन बढ़ती रहे यही मेरी मंगल कामना है । नाहटों की गवाड़ अभय जैन ग्रन्थालय -अगरचन्द नाहटा बीकानेर आश्विन कृष्णा ५ सं० २०१०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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