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खण्ड ]
भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों के कई नगर एवं ग्रामों में विनिर्मित जिनालयों में विराजमान प्रतिमाओं में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित एवं संस्थापित प्रतिमायें बहुत संख्या में हैं। उनके प्रतिष्ठापक प्रा० ज्ञा० श्रावक श्रेष्ठियों का परिचय देना इतिहास के उद्देश्य के भीतर आ जाता है; श्रतः प्रतिमा के प्रा० ज्ञा० प्रतिष्ठापक का नाम, गोत्र, निवास, पूर्वज, कुटुम्बीजन तथा किन भगवान् की प्रतिमा, किस संवत् में, किस के श्रेयोर्थ, किन आचार्य के द्वारा, किन २ परिजनों की साक्षी एवं साथ में प्रतिष्ठित करवाई का संक्षिप्त परिचय प्रांत एवं ग्राम-नगर के क्रम से निम्न प्रकार दिया जाता है ।
प्र० वि० संवत् सं० १३६६ वै०
शु० १ सं० १४२२ वै०
शु० ११ बुघ०
सं० १४२३ फा० शु० ८ सोम ०
सं० १४५७ आषाढ
शु० ५ गुरु०
:: विभिन्न प्रान्तों में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें - राजस्थान - उदयपुर ::
विभिन्न प्रान्तों में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें
सं० १४७८
सं० १४८१ वै० शु० २ शनि ०
सं० १४८३ द्वि० वै०
कृ० ५ गुरु०
सं० १४८६
राजस्थान- प्रान्त उदयपुर (मेदपाट)
श्री शीतलनाथ - जिनालय में पंचतीर्थयाँ और मूर्तियाँ प्र० प्रतिमा प्र० श्राचार्य
भावदेव
पार्श्वनाथ
चन्द्रप्रभ
प्रा० ज्ञा० श्रे० नरदेव स्त्री गांगी के पुत्र श्रे० भाबट ने स्वस्त्री कडूदेवी, पुत्र वरणादिसहित पितृव्य चांपा के श्रेयोर्थ. मड़ाहड़गच्छीय. प्रा० ज्ञा० ० काला स्त्री कोल्हणदेवी पुत्र सरवण ने उदयप्रभसूर पिता-माता के श्रेयोर्थ.
सुव्रतस्वामि अंचलगच्छीय- प्रा० ज्ञा० श्रे० खीमसिंह स्त्री सारूदेवी के पुत्र जसराज ने जयकीर्त्तिरि पुत्र वीका, आशा के सहित.
तपा. सोमसुन्दर - प्रा० ज्ञा० श्रे० कल्हा स्त्री उमादेवी के पुत्र सूरा ने स्वस्त्री सूरि नीदेवी, भ्रातृ चांपा, पुत्र सादा, पेथा, पद्मा के सहित स्वश्रेयोर्थ.
जै० ले ०सं० भा० २ ले० १०४७, १०५३ (प्रा० ले० सं० ले० ७५), १०५४, १०६१, १०६६, १०६६, १०७१, १०६७ ।
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कुंथुनाथ
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प्रा० ज्ञा० प्रतिमा प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि प्रा० ज्ञा० ० छाड़ा ने स्वस्त्री वाल्हू के सहित
साधू - पूर्णिमा धर्मतिलकमूरि श्रीसूर
कछोलीगच्छीय कछोलीवासी प्रा० ज्ञा० ० तिहूण स्त्री चाहिणीदेवी के रत्नप्रभसूर पुत्र सेगा ने स्वपिता-माता के श्रेयोर्थ शाली भद्रसूरि प्रा० ज्ञा० ० हरपाल भार्या आल्हणदेवी के पुत्र विजयपाल ने माता-पिता के श्रेयोर्थ
प्रा० ज्ञा० श्रे० छाहड़ स्त्री मोखलदेवी के पुत्र त्रिभुवन ने पिता-माता के श्रेयोर्थ