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खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ - श्रा० सोनी :: [ ४०७.
श्रेष्ठि सूदा वि० सं० १६२७
तपागच्छगगनमणिभट्टारक श्री ६ आनंदविमलसूरि के पट्टधर श्री ६ विजयदानसूरि के पट्टप्रभावक गौतमावतार परमगुरु गच्छाधिराज ६ हीरविजयसूरि के विजयराज्य में पं० श्रीमद् ज्ञानविमलगणि के सदुपदेश से पं० खुदा ने धर्मपत्नी श्रीदेवी, पुत्र शाह संग्राम, धनराज, देवचन्द्र, रूपचन्द्र, दीपचन्द्र आदि प्रमुख कुटुम्ब श्रेयोर्थ श्री ज्ञानभंडार की अभिवृद्धि के निमित्रा श्री 'नंदीसूत्र' नामक धर्मग्रंथ की प्रति प्राग्वाटज्ञातीय वृद्धशास्त्रीय नंदरवारनगर-निवासी ले० खीमराज द्वारा वि० सं० १६२७ मार्गशिर शु० ५ को नंदरवारनगर में लिखवाई । १
मं० धनजी वि० सं० १६७४
प्राग्वाटज्ञातीय मं० देवजी के पुत्र मं० धनजी ने अपने वाचन के लिये वीरमग्रामनिवासी पं० विमलसिंह से वि० सं० १६७४ भाद्रपद कृष्णा ७ गुरुवार को श्री ' राजप्रश्नीयसूत्र' नामक ग्रन्थ की प्रति लिखवायी ।२ श्रेष्ठ देवराज और उसका पुत्र विमलदास वि० सं० १६८०
विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में धवन्लकपुर में प्राग्वाटज्ञातीय देवराज नामक एक धर्मप्रवृत्ति श्रावक अपने पुत्र विमलदास के सहित रहता था । वह श्रीमद् पार्श्वचन्द्रसूरिगच्छ का अनुयायी था । दोनों पिता और पुत्र बड़े ही श्रीमन्त और शास्त्रों का अनुशीलन करने वाले थे । इनकी धर्मप्रियता से प्रसन्न होकर ब्रह्मऋषि जिनको विनयदेवसूरि भी कहते हैं ने वि० सं० १६८० चैत्र कृ० ११ रविवार को 'अदारपापस्थानपरिहारभाषा' नामक ग्रन्थ देवराज के पुत्र विमलदास के पठनार्थ लिखकर पूर्ण किया था ।
श्रीमद् रत्नसिंहरि के समय में श्रीमद् समरचन्द्रशिष्य नारायण ने 'श्रेणिकरास' सं० १७०६ फाल्गु कृ० ११ सोमवार को आर्या सोभा और देवराज के पुत्र विमलदास के पठनार्थ लिख कर पूर्ण किया था । ३
श्राविका सोनी वि० सं० १७२१
पितापक्ष से जूनागढ़ निवासी प्राग्वाटज्ञातीय वृद्ध सं० सोनी श्रीपाल के पुत्र सो० खीमजी के पुत्र सो० रामजी के पुत्र सो० मनजी के पुत्र सो० पासवीर और मातृपक्ष से स्तम्भतीर्थवासी तपापक्षीय श्री हीरविजयसूरि के
१-प्र० सं० भा० २ पृ० १२३ प्र० ४७० ( नंदीसूत्र ) २- प्र० सं० भा० २ पृ० १८३ प्र० ७२४ (श्री राज प्रनीयसूत्र) ३ - जै० गु० क० भा० १५० १५६, ५१६