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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
राम्हण
सोहड़
म्हण
1
देपाल
पद्म
श्रेष्ठ अभयपाल वि० सं० १४४०
ब्रह्मा बोड़क [वीरी ]
देवसिंह
सुप्रसिद्ध श्रावक सांगा गांगा और उनके प्रतिष्ठित पूर्वज वि० सं० १४२७
सोम
[ तृतीय
सलखा
०घाव और उसका परिवार
विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में उदयगिरिवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० धांध एक प्रसिद्ध श्रावक था । यह दृढ़ जैन धर्मी, शुद्ध श्रावकव्रतपालक एवं साधु-मुनियों का परम भक्त था । देल्हणदेवी नाम की उसकी पतिपरायणा स्त्री थी । उसके अर्जुन और झड़सिल नामक दो अति प्रसिद्ध पुत्र हुए। ज्येष्ठ पुत्र अर्जुन बड़ा दानी, उदार था । वह प्रभु-पूजन में बड़ा रस लेता था । उस समय के चोटी के उत्तम श्रावकों में वह गिना जाता था । होने वाले उत्सव, महोत्सवों में उसका अग्रभाग और अधिक सहयोग रहता था । उसका मन सदा धर्म - ध्यान में लीन रहता था । ऐसी ही गुणवती सहजन्लदेवी नाम की उसकी प्रिया थी । सहजन्लदेवी के नामांकिता छः पुत्र हुये । ज्येष्ठ पुत्र मुंजालदेव था । वह अत्यंत विश्वसनीय एवं आज्ञापालक था । दूसरा पुत्र धवर नामक था । धवर प्रखर बुद्धिमान् था । तृतीय पुत्र गुणपल्ल और चतुर्थ धना था । ये दोनों भी गुणवान् थे । पांचवें और छट्ठे पुत्र क्रमश: सांगा और गांगा थे । वि० सं० १४२७ में सांगा गांगा दोनों भ्राताओं ने 'श्री कल्पसिद्धान्त' अर्थात् 'कल्पसूत्र' को ताड़ पत्र पर लिखवा कर सोत्सव एवं भक्ति-भाव पूर्वक पूर्णिमापक्षीय श्रीमद् गुणचन्द्रसूरि-गुणप्रभसूरि-गुणभद्रसूरि के गुरु आता श्रीमद् मतिप्रभ को समर्पित किया । १
आशापल्लीवासी प्राग्वाटज्ञातीवंशभूषण व्य० अयंत की भार्या मटू की पुत्री माझादेवी के पुत्र व्य० अभयपाल और सरवण थे । सरवण ने दीक्षा ग्रहण की थी; अतः उस के श्रेयार्थ श्रे० अभयपाल ने न्यायोपार्जित द्रव्य से ज्ञानाराधना के लिये तपागच्छनायक श्रीमद् जयानन्दसूरि के सदुपदेश से वि० सं० १४४० में श्रीमद् प्रसन्नचन्द्रस्वरिशिष्य श्रीमद् देवभटाचार्यविरचित 'श्री पार्श्वनाथचरित्र' नामक ग्रंथ की प्रति आशापल्लीनिवासी गोडान्वयी arrer कवि सेल्हण के पुत्र वल्लिंग द्वारा ताड़पत्र पर लिखवाई | २
१ - प्र० सं० भा० १ पृ० ३-४ (श्री कल्पसूत्र ता० प्र० ८ ) २ - प्र० सं० भा० १५० ६६ ( ताड़पत्र) प्र० १०७ (पार्श्वनाथ चरित्र)