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खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थ - श्रे० सेवा :: [ ३८
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जाम्हण [नाऊ ]
विल्हण [रूप]
सज्जनसिंह
I
आल्हण
वीरपाल
आसपाल [खेतुका] सीधू [ सोहगा ( सोहरा ) ] जगतसिंह
T
अभयसिंह
श्रे० शुभंकर और उसका पौत्र यशोधन
वरदेव
तेजसिंह
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सहजसिंह
मन्हण
वैरसिंह
श्रेष्ठि सेवा
वि० सं० १३२६
मोहिनी
पद्मसिंह [ वालू]
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नागपाल
वीरी
विक्रम की दशवीं और ग्यारहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय शुभंकर नामक अति गौरवशाली पुरुष हो गया है । उसके सेवा नामक पुत्र था । सेवा के यशोधन नामक पुत्र हुआ । यशोधन के उद्धरण, सत्यदेव, सुमदेव, और लीला नामक पांच पुत्र हुये । सुमदेव ने चारित्र ग्रहण किया और अपनी योग्यता एवं प्रखर तपस्या के कारण गच्छनायकपद को प्राप्त हुआ और श्री मलयप्रभसूरि के नाम से विख्यात हुआ ।
बाहू
० बादू के त्रिभुवन को अलंकृत करने वाले तीन पुत्र हुये। उनमें ज्येष्ठ पुत्र दाहड़ था और लाडस
और सलषण छोटे थे । इनके चार बहिनें थीं । लषमिणी सुषमिणि, जसहिणि और जेही। वैसे तो तीनों भ्राता बादू और उसके पुत्र पवित्र, विश्रुत और समाज में अग्रगण्य थे। फिर भी दाहड़ अधिक विख्यात था । दाहड़ का परिवार वैसे दाहड़ ज्येष्ठ भी था । दाहड़ की धर्मपत्नी सिरियादेवी बड़ी तपस्विनी और धर्मपरायणा स्त्री थी। उसके चार पुत्र हुये । सोलाक ज्येष्ठ पुत्र था । सोलाक से छोटा वासल था । वासल से छोटा साधु बन गया था और आगे उन्नति करके श्री मदनप्रभसूरि के नाम से विख्यात हुआ । चौथा पुत्र वीरूक नामक था । सांउदेवी नामा कनिष्ठा पुत्री थी ।
* जै० पु० प्र० सं० पृ० १५-१६ प्र० १३ (परिशिष्टपर्व पुस्तिका)