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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ तृतीय
केशवदास, रसखान, सेनापति, गंग, दादूदयाल, सुन्दरदास, बनारसीदास, बीरबल आदि अनेक प्रसिद्ध कवि एवं विद्वानों को इस शतक ने जन्म दिया । इनके साहित्य से आज हिन्दीभाषा का घर अनुप्राणित हो रहा है और संसार में उसका मुख उज्ज्वल है । कविवर समयसुन्दर भी प्रतिभावान् एवं अध्ययनशील व्यक्ति थे । अनुकूल राजा हो, कृपालु गुरु हो, गौरवशाली कुल या गच्छ हो और सहायक वातावरण हो तो फिर जागरूक एवं प्रतिभाशाली पुरुष को बढ़ने में बाधा भी कौनसी रह जाती है । कविवर समयसुन्दर को सारे उत्तम साधन प्राप्त थे । बस उन्होंने अपना समस्त जीवन धर्म-प्रचार और साहित्य-सेवा में व्यतीत किया और सत्रहवें शतक के प्रधान कवियों एवं मुनियों में पगिने गये। सिंध और पंजाब प्रांतों में आपने जीवदयासंबंधी अच्छा प्रचार किया। सिंध का मखनूम महमद शेख और सम्राट् अकबर आपके चारित्र और उपदेश से सदा आपके प्रशंसक बने रहे ।
आप एक महान् विद्वान्, टीकाकार, संग्राहक, छंद एवं काव्य मर्मज्ञ, भाषानिष्णात, सुयोग्य समालोचक और जिज्ञासु थे । आपकी कृतियों में संस्कृत की कृतियाँ निम्नवत् हैं:
१ - भावशतक. श्लो० १०१. सं० १६४१ | ( सर्वप्रथम कृति) २ - रूपकमाला पर वृत्ति श्लो० ४०० सं० १६६३ चातुर्मासपर्व-व्याख्यान-पद्धति. सं० १६६५ चै० शु० १०. अमरसर में । ३ - कालिकाचार्यकथा. सं० १६६६ । ४- समाचारीशतक. सं० १६७२ । ५ - विशेषशतक. सं० १६७२ । ६ - विचारकशतक. सं० १६७४. मेड़ता में । मेड़ता और मंडोर के राजा आपका बहुत संमान करते थे । फलतः आपने जीवदयासम्बन्धी अनेक सुकृत्य वहाँ पर करवाये थे ।
७–अष्टलक्षार्थी. सं० १६७६. 'राजानों ददते सोंख्यम्' इस प्रकार के वाक्यों का आठ लाख अथवाला यह ग्रंथ है। लाहौर में सम्राट् इस अद्भुत ग्रन्थ को देखकर अत्यन्त आश्चर्यान्वित हुआ था और इसको स्वहस्त में लेकर पुनः कविवर को देकर प्रमाणभूत किया था। इस ग्रंथ की रचना वि० सं० १६४६ में प्रारम्भ हो गई थी और वि० सं० १६४६ में जब आप सम्राट् से मिले थे, उस समय तक इसका अधिक भाग तैयार हो चुका था । ८ - विसंवादशतक. सं० १६८५ ।
६-विशेषसंग्रह. सं० १६८५. लूणकर्णसर में । १० – गाथासहस्री. सं० १६८६ । ११ - जयतिहुयण नामक स्तोत्र पर वृत्ति. सं० १६८७. पाटण में । १२ - दशवैकालिकसूत्र पर शब्दार्थवृत्ति श्लो० ३३५०. सं० १६६१ । १३ – वृत्तरत्नाकरवृत्ति. सं० १६६४. जाबालिपुर में । १४–कल्पसूत्र पर कल्पलता नामक वृत्ति. श्लो० ७७०० । १५ –नवतत्त्वपर-वृत्ति | १६- जिनवल्लभसूरिकृत वीरचरित्र - स्तवन पर ८०० श्लोकों की टीका । १७ - संवादसुन्दर. १६ – रघुवंशवृत्ति । २० – कल्पलता मध्य भोजन - विच्छित्ति ।
श्लो० ३३३ | १८-चातुर्मासिक व्याख्यान । २१- कल्याणमंदिरस्तोत्र पर वृत्ति. सं० १६६४. ।
२२ - जीवविचार, २३ - नवतत्व, २४ - दंडक. सं० १६६८ में अहमदाबाद में हाजा पटेल की पोल में रह कर रचे. गुर्जर-भाषा में पद्यकृतियाँ
कवि ने गुर्जर भाषा में अनेक दाल, स्तवन, देशियाँ, रास, काव्य गीत रचे ।
१ - चौवीशी. सं० १६५८. अहमदाबाद में विजयादशमी के शुभोत्सव पर ( पालीताणा भंडार में )
२–शांबप्रद्युम्न-प्रबंधरच्चा. सं० १६५६ खंभात विजयादशमी के शुभोत्सव के दिन रचा । इसकी रचना उपकेशज्ञातीय