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खण्ड ] :: श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु-तपागच्छीय श्रीमद् भावरत्नसूरि :: [ ३४७
देखे और मेल करना चाहते थे । सिरोही का दीवान मोतीशाह तेजपाल उपरोक्त दोनों आचार्यों में मेल कराने का पूर्ण प्रयत्न कर रहा था | चरित्रनायक तो पारस्परिक भेद को नष्ट करने का प्रयत्न कर ही रहे थे । वे इस समय ईडर में थे । संघ और साधुओं की प्रार्थना पर वे अहमदाबाद पधारे। दीवान मोतीशाह तेजपाल भी अहमदाबाद पहुँच गया । साधुओं एवं संघ के प्रयत्नों से दोनों उपरोक्त आचार्यों में वि० सं० १६८१ प्रथम चैत्र शु० ६ नवमीं को मेल हो गया और आपने विजयदेवसूरि को नमस्कार किया । इससे आपकी संघ में अतिशय कीर्त्ति प्रसारित हुई । सिरोही के दीवान मोतीशाह तेजपाल को 'गच्छभेद निवारणतिलक' और संघपतितिलक प्राप्त हुआ । अहमदाबाद के नगर सेठ शांतिदास को जो सागरमति था यह मेल बुरा लगा। उसने दोनों आचार्यों को कैद करवाने का प्रयत्न किया । परन्तु दोनों आचार्य किसी प्रकार बच कर ईडर जा पहुंचे परन्तु दुःख की बात है कि यह मेल अधिक समय तक नहीं ठहर सका । पुनः मेल टूट गया और 'देवसूर' और 'आणंदसूर' नाम के दो प्रबल पक्ष पड़ गये, जिनका प्रभाव आज तक चला आ रहा है ।
मेल टूट जाने से आपको अतिशय दुःख हुआ । निदान आपको विजयराजसूरि को अपना पट्टधर घोषित करना पड़ा | आपने अनेक तप किये और अनेक यात्रायें कीं और 8 बार जिनबिंबों की प्रतिष्ठायें कीं। सूरत और विजयानन्दसूरि की संक्षिप्त खंभात में आपका अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव रहा । आपने कई प्रकार के तप किये धर्म- सेवा और स्वर्गगमन जैसे तेरहमासिक, बीशस्थानक पद-आराधना, सिद्धचक्र की ओली । आपने अनेक बार ag और अष्टम किये । एक बार आपने त्रैमासिक तप करके ध्यान किया था। आपने तीर्थ यात्रायें भी कई बार श्रीदाचतीर्थ की ६ बार, शंखेश्वरतीर्थ की पांच बार, तारंगगिरितीर्थ की दो बार, अंतरिक्षपार्श्वनाथतीर्थं
की दो बार, सिद्धाचलतीर्थ की दो बार, गिरनारतीर्थ की एक बार - इस प्रकार आपने एक २ तीर्थ की कई बार यात्रायें की थीं। आप बड़े ही सरल स्वभावी और निष्कपट महात्मा थे । आप अपने पक्ष में मेल देखना चाहते थे । मेल हो जाने के पश्चात् विजयदेवसूरि की आज्ञा से आपने अनेक जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठायें की थीं। कपरवाड़ा नामक ग्राम में आपने २५० जिनबिंबों की प्रतिष्ठा की थी । अचलगढ़ के छोटे आदिनाथ - जिनालय में आप द्वारा प्रतिष्ठित वि० सं० १६६८ की चार जिनप्रतिमायें विराजमान हैं, जिनको सिरोहीनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय शाह गांगा के पुत्र वणवीर के पुत्र शाह राउल, लक्ष्मण आदि ने प्रतिष्ठित करवाई थीं । इस प्रकार धार्मिक जीवन व्यतीत करते हुये खंभात में वि० सं० १७११ आषाढ़ कृ० १ मंगलवार को आपका स्वर्गवास हुआ । महाकवि ऋषभदास आपका अनन्य भक्त और श्रावक था । *
तपागच्छीय श्रीमद् भावरत्नसूरि दीक्षा वि० सं० १७१४
मरुधरप्रांत के सोनगढ़ (जालोर) से ७ कोस के अन्तर पर गुढ़ा ( बालोतरान) में प्राग्वाटज्ञातीय देवराज की धर्मपत्नी नवरंगदेवी की कुक्षी से भीमकुमार नाम का वि० सं० १६६६ में एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसकी
*श्र० प्रा० जे० ले० सं० भा० २ ले० ४७६ -८० । ० का ०म० मौ० तृतीय की प्रस्तावना