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________________ खण्ड : श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक श्राचार्य और साधु-तपागच्छीय श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि :: [३३१ अपने विश्वासपात्र वीर एवं चतुर सहस्त्रों सुभट भेजे और संघ की अन्य प्रकार की विविध सेवायें करने के लिये अनेक घुड़सवार और राजकर्मचारी भेजे । निश्चित् शुभ मुहूर्त में गच्छनायक श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि की अध्यक्षता में संघयात्रा प्रारम्भ हुई । उस समय सं० गुणराज ने याचकों को इतना दान दिया कि उनका दारिद्रय दूर-सा हो गया । संघ थोड़े २ अन्तर पर पड़ाव डालता हुआ, मार्ग में ग्राम, नगरों का आतिथ्य स्वीकार करता हुआ, जिनालयों में जीर्णोद्धार के निमित्त उचित द्रव्य का दान देता हुआ, मार्गणों की अभिलाषाओं की शांति करता हुआ, प्रमुख नगर वीरमग्राम, धंधूका, वलभीपुर होता हुआ श्री शत्रुजयमहातीर्थ पर पहुंचा और आदिनाथ-प्रतिमा के दर्शन करके वह अति हर्षित हुआ। तीर्थाधिराज पर संघपति ने गुरुदेव की निश्रा में संघपति के योग्य सर्व कार्य अत्यन्त हर्ष के साथ पूर्ण किये। संघ शत्रुजयतीर्थ से लौट कर मधुमती आया और वहाँ सं० गुणराज की विनती पर श्रीमद् जिनसुन्दरवाचक को महामहोत्सवपूर्वक श्रीमद् सोमसुन्दरसरि ने परिपद प्रदान किया। सं० गुणराज ने वहाँ विशाल साधर्मिक-वात्सल्य किया और प्रत्येक सधर्मी बन्धु को दिव्य वस्त्रों की भेट दी । मधुमती से प्रस्थान करके संघ देवपुर, मंगलपुर होता हुआ गिरनारतीर्थ पहुँचा । संघ ने वहाँ तीर्थपति भ० नेमिनाथ-प्रतिमा के दर्शन किये, सेवा-पूजा की और वह अति आनन्दित हुआ । सं० गुणराज ने याचकों को अति द्रव्य दान में दिया, जीर्णोद्धार निमिश अति प्रशंसनीय मात्रा में द्रव्य अर्पित किया और बृहद् साधर्मिकवात्सल्य किया। गिरनारतीर्थ से संघ कर्णावती की ओर रवाना हुआ। कर्णावती पहुँच कर सं० गुणराज ने भारी सार्मिक-वात्सल्य किया और सधर्मी बन्धुओं की विविध प्रकार से संघ-पूजायें की। गुरुवर्य सोमसुन्दरमरि एवं उनकी साधु मण्डली को सं• गुणराज ने अमूल्य वस्त्र वहिरायें। इस संघयात्रा में सं० गुणराज ने अतिशय द्रव्य का सद् व्यय करके जैन-शासन की भारी उन्नति की और अमर कीर्ति संपादित की। योग्य गुरु के सुयोग पर भव्य जीवों में स्वभावतः धर्म-भावनायें किस सीमा तक वृद्धिगत हो जाती हैं और वे एक योग्य श्रावक से क्या २ पुण्यकार्य करवा लेती हैं, इसका परिचय पाठक सं० गुणराज के जीवन में देखे ।। ____ अनुक्रम से विहार करते हुए गच्छनायक सूरीश्वर अपनी साधु एवं शिष्य-मण्डली के सहित मेदपाटान्तर्गत देवकुलपाटक में पधारे और वहाँ श्रीमंत शिरोमणि सुश्रावक वत्सराज के पुत्र वीशल द्वारा आयोजित महामहोत्सव आप श्री की तत्वावधानता के साथ शुभ मुहूर्त में मुनिविशालराज को वाचकपद प्रदान किया। श्रे० वीशल ने में देवीशल और उसके भारी साधर्मिकवात्सल्य किया, विस्तारपूर्वक संघपूजा की और संघ को उत्तम पुत्र चंपक ने कई पुण्य कार्य पहिरामणी दी। तत्पश्चात् सूरीश्वर अपनी शिष्य-मण्डली के सहित मेदपाटप्रदेश के किये छोटे-बड़े ग्रामों में जैन-धर्म का उपदेश देते हुए विहार करने लगे । उक्त वाचकपदोत्सव की समाप्ति के पश्चात् श्रे, वीशल ने चित्तौड़ में श्री श्रेयांसनाथ-जिनालय का निर्माण करवाया और गच्छाधिपति श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के करकमलों से स्वभार्या खीमादेवी जो श्रे० रामदेव की पुत्री थी, के पुत्र श्रे० धीर, चम्पक सहित शुभ मुहूर्त में महामहोत्सव पूर्वक उसकी प्रतिष्ठा करवाई। श्रे० वीशल ने इस प्रकिष्ठोत्सव के शुभावसर पर पुष्कल द्रव्य दान एवं दया में व्यय किया था और बड़े २ सार्मिकवात्सल्य करके संघ की अपार भक्ति की थी। श्रे० वीशल कुछ ही समय पश्चात स्वर्ग को सिधार गया और उसके कार्य का भार उसके पुत्र श्रे० धौर और चम्पक पर पड़ा । चम्पक अधिक धर्म और पुण्यकार्यों का करने वाला हुआ। चम्पक ने माता की इच्छा
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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