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: श्री जैन श्रमण-संघ में हुये महाप्रभावक प्राचार्य और साधु-तपागच्छीय श्रीमद् सोमसुन्दसूरि ::
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गया था तथा जयानन्दसूरि और देवसुन्दरसूरि दोनों को वि० सं० १४२० में अणहिलपुरपत्तन में प्राचार्यपद प्रदान किये गये थे।
जैसे ये प्रखर तेजस्वी थे, वैसे ही विद्वान् भी थे। इनके बनाये हुये ग्रंथ निम्रप्रकार हैं:
१-बृहन्नव्यक्षेत्रसमाससूत्र २-सत्तरिसयठाणम् ३-यत्राखिल-जयवृषभशास्ताशर्मवृत्तियाँ ४-५-श्री तीर्थराज. चतुर्था स्तुति तथा उसकी वृत्ति ६-शुभ भावानत ७-श्री मद्वीरस्तवन
-कमलबंधस्तवन -शिवशिरसिस्तवन १०-श्री नाभिसंभवस्तवन ११-श्री शैवेयस्तवन इत्यादि
उपरांत इनके आपने गुरु द्वारा रची गई अट्ठावीस यमक-स्तुतियों पर वृत्ति लिखी और कई एक नवीन स्तोत्रों की भी रचनायें की हैं। इनके हाथ से अनेक नवीन जिनबिंबों की प्रतिष्ठायें हुई के उल्लेख मिलते हैं। ६६ वर्ष का आयु पूर्ण करके वि० सं० १४२४ में इनका स्वर्गवास हो गया ।*
श्री तपागच्छाधिराज श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि दीक्षा वि० सं० १४३५. स्वर्गवास वि० सं० १४६६
पालणपुर (प्रह्लादनपुर ) में विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्राग्वाटज्ञातिशृंगार नरश्रेष्ठ श्रेष्ठिवर्य सज्जन मंत्री रहता था। सज्जन मन्त्री बड़ा ही धर्मात्मा, जिनेश्वरभक्त, उदार श्रावक था। राजसभा,
समाज एवं नगर में वह अग्रगण्य पुरुष था। उसके दान एवं पुण्य की दूर २ तक वंश-परिचय
___ ख्याति फैली हुई थी । जैसा सज्जन धर्मात्मा था, वैसी ही गुणवती एवं धर्मानुरागिनी उसकी माल्हणदेवी नामा पतिपरायणा स्त्री थी। दोनों स्त्री-पुरुष सदा धर्म-पुण्य में लीन रहकर सुख एवं शांति पूर्वक अपने गृहस्थ-धर्म का पालन कर रहे थे।
वि० सं० १४३० में माघ कृष्णा १४ को सज्जन श्रेष्ठि को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र का मुख चन्द्र के समान उज्ज्वल और कान्तियुक्त था, अतः उसने अपने पुत्र का नाम भी सोम ही रक्खा। सोम बड़ा ही
चंचल हृष्ट-पुष्ट एवं मनोहारिणी आकृति वाला शिशु था। वह सज्जन मंत्री के घर पुत्र सोम का जन्म
का दीपक था और प्रह्लादनपुर का सचमुच चन्द्रमा ही था । उसके रूप एवं लावण्य को निहार कर समस्त नगर मुग्ध रह जाता था । सोम धीरे २ बड़ा होने लगा और अपनी अद्भुत बालचेष्टाओं से प्रत्येक जन को चमत्कृत करने लगा । सोम की बुद्धि, वाकचपलता एवं बाललीला को देख कर बुद्धिमान् जन विचार करते थे कि यह बालक समाज, देश एवं धर्म की महान् सेवा करने वाला होगा। इस प्रकार बाललीला करता हुआ मोम जब सात वर्ष का हुआ ही था कि प्रहादनपुर में तपागच्छनायक श्रीमद् जयानन्दसरि पधारे । ..
*?-कवि ऋषभदास कृत हरिसरिरास पृ०२६४. २-० गु० क०भा०२ पृ०७१८. ३-०प० पृ०१८०,