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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
प्राग्वाटज्ञातीयवंशावतंस चैत्यनिर्माता श्रे० बाहड़ और उसका वंश वि० शताब्दी तेरहवीं और चौदहवीं
श्रेष्ठ बाहड़ के पुत्र ब्रह्मदेव और शरणदेव
विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में प्रा० ज्ञा० ० बाहड़ एक अति प्रसिद्ध एवं धार्मिकवृत्ति का सद्पुरुष हो गया है। उसने श्रीमद् जिनभद्रसूरि के सदुपदेश से पादपरा (संभवतः बड़ोदा के पास में आया हुआ पादराग्राम ) ग्राम में उदेवसहिका (९) नामक श्री महावीरस्वामी का मन्दिर बनवाया ।
० बाहड़ के ब्रह्मदेव और शरणदेव नामक दो पुत्र थे । श्रे० ब्रह्मदेव ने वि० सं० १२७५ में श्री आरासणाकर में श्री नेमिनाथचैत्यालय में दादाधर बनवाया ।
श्र० शरणदेव का विवाह सूहवदेवी नामा परम गुणवती कन्या के साथ हुआ था। सूहवदेवी की कुक्षी से वीरचन्द्र, पासड़, आंबड़ और रावण नामक चार पुत्र हुये थे । इन्होंने श्रीमद् परमानन्दसूरि के सदुपदेश से सं० १३१० में एक सौ सित्तर जिनबिंबवाला जिनशिलापट्ट (सप्ततिशततीर्थजिनपट्ट) प्रतिष्ठित करवाया । वि० सं० १३३८ में इन्होंने इन्हीं आचार्य के सदुपदेश से श्रे० वीरचंद्र की स्त्री सुखमिणी और उसका पुत्र पूना और पूना की स्त्री सोहग तथा सोहगदेवी के पुत्र लूणा और झांझण; श्र े० बड़ की स्त्री अभयश्री और उसके पुत्र बीजा और खेता; रावण की स्त्री हीरादेवी और उसके पुत्र बोड़सिंह और उसकी प्रथम स्त्री कमलादेवी के पुत्र कडुआ और उसकी द्वितीया स्त्री जयतलदेवी के पुत्र देवपाल, कुमारपाल, अरिसिंह और पुत्री नागउरदेवी श्रादि कुटुम्बीजनों के सहित श्री नेमिनाथचैत्यालय में श्री वासुपूज्य देवकुलिका को प्रतिष्ठित करवायी तथा वि० सं० १३४५ में इन्होंने सम्मेतशिखरतीर्थ में मुख्य प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई और मोटे २ तीर्थों की यात्रा करके अपने जन्म को इस प्रकार अनेक धर्म के सुकृत्य करके सफल किया । ये आज भी पोसीना नामक ग्राम में जो कुम्भारिया से थोड़े ही अन्तर पर रोहिड़ा के पास में है श्री संघ द्वारा पूजे जाते हैं ।
1
वंश-वृक्ष
बाहड़
वीरचन्द्र [सुखमिणी]
पूना [सोहगदेवी ]
ब्रह्मदेव
I
पासड़
बीजा
[ तृतीय
शरणदेव [सुहवदेवी]
बड़ [अभयश्री ]
रावण [हीरादेवी ] I
| बोड़सिंह [ १ कमला २जयतलदेवी]
खेता
कडुआ
लूणा
झांझण
देवपाल
कुमारपाल अरिसिंह नागउरदेवी
जै० ले ० सं ० मा० २ ले० १७६५ । प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले० २७६, २६० । अ०प्र०जे० ले ० सं ० ले० ३०, ३२.