________________
२८६ ]
:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ तृतीय
सं० सचवीर की श्रृंगारदेवी नामा स्त्री थी । शृंगारदेवी के देवराज, कृष्णराज और केशवराज नामक तीन योग्य पुत्र हुये । कृष्णराज का विवाह कमलादेवी नामा कन्या से हुआ । कमलादेवी के धनराज नामक पुत्र हुआ, जिसका विवाह सारुदेवी से हुआ था । सं० केशव की स्त्री का नाम रूपादेवी था। रूपादेवी की कुक्षी से सं० नाथा का जन्म हुआ । सं० नाथा की स्त्री का नाम कमलादेवी था । कमलादेवी के जीवराज नामक पुत्र हुआ ।
पश्चिमाभिमुख श्री आदिनाथ चतुर्मुख- जिनप्रासाद
सिरोही नगर सिरोही-राज्य की राजधानी है । राजप्रासादों की तलहटी में सशिखर जिनमन्दिरों की हारमाला इतनी लम्बी और इतने क्षेत्र को घेरे हुये है कि इसी के कारण सिरोही 'अर्धशत्रुंजयतीर्थ' कहा जाता है । उपरोक्त सशिखर जिनमन्दिरों में भव्य, विशाल और प्रमुख मन्दिर सं० सीपा का बनाया हुआ श्री आदिनाथ चतुर्मुख - जिनालय है । इस मन्दिर की बनावट को देखकर श्री नलिनीगुल्मविमान- त्रैलोक्यदीपक - धरणविहार - श्री राणकपुरतीर्थ - आदिनाथ– चतुर्मुख जिनप्रासाद
सं० सीपा का सिरोही में चौमुखा - जिन चैत्यालय बनाना और उसकी प्रतिष्ठा
८ - द्वि० मंजिल के गंभारा में पूर्वाभिमुख प्रतिमा का लेखांश
'सं० गुणराज भा० अजबदे सु० सं० वीरभाणेन' चौ० जिनालय
E - दक्षिण की उत्तराभिमुख बड़ी देवकुलिका में दूसरी आसनपट्टी पर प्रतिमा सं० १०, १२ श्री अजितनाथबिंब और सुविधिनाथबिंबों का लेखाश
'सं० गुणराज सुत सं० वीरभाण भार्याी जसरूपदे नाम्न्या श्री अजितनाथ बिवं' 'सं० गुणराज सुत सं० राजभाणेन श्री सुविधिनाथबिंब' चौ० जिनालय १०- वायव्यकोण की सशिखर दे० कु० में नमिनाथबिंब का लेखांश
to कर्मी भार्या केसर दे नान्या श्री नमिनाथबिंब' चौ० जिनालय
११ दक्षिण की एक बड़ी दे० कु० में पूर्वाभिमुख श्रादिनाथबिंब का लेखाto कमी भार्या कमलादे नाम्न्या श्री नमिनाथबिंबं ' चौ० जिनालय
१२- श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथचैत्य के खेलामण्डप के उत्तर दिशा के आलय में श्री सम्भवनाथबिंब का लेखाश'सं० कर्मी भार्या कमला पुण्यार्थं सं० थिरपाल केन
१३- द्वि० मंजिल के गंभारा में उत्तराभिमुख श्री मुनिसुव्रतबिंब का लेखाश
'सं० सचवीर भार्या सिणगारदे सुत सं० देवराज पुण्यार्थं सं० कर्मकेन' चौ० जिनालय १४- दक्षिण दिशा की उत्तराभिमुख बड़ी दे० कु० में पूर्वाभिमुख श्री श्रेयांसनाथबिंब का लेखांश'सं० सचवीर भार्या सणगारदे पुत्र सं ० कृष्णा पुण्यार्थं सं० कर्मकेन' चौ० जिनालय
१५- उत्तर दिशा की दे०कु० सं० १ में श्रेयांसनाथबिंब का लेखा
'सं० सचवीर सुत सं० केशव भार्या रूपादे सुत सं० नाथाकेन' चौ० जिनालय
१६- दक्षिणपक्ष की दे०कु० सं० २ में श्री नमिनाथबिंब का लेखाश'सं० कृष्णा भायी कमला पुण्यार्थ सं० कमीकेन'
'सं० कृष्णा सुत सं० धनराजेन' चौ० जिनालय