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:: प्राग्वाट-इतिहास::
[ तृतीय
देता [कनकाई]
नोता [लाली] समधर [वड़धू] ईसा [जीविणि]
मल्लाई
पुण्यपाल
हेमराज
धरण
। पूरी जसू
(पु त्रि याँ )
। बासु
सोनपाल
अमीपाल
श्री सिरोहीनगरस्थ श्रीचतुमुख-आदिनाथ-जिनालय का निर्माता कीर्तिशाली श्रीसंघमुख्य सं० सीपा और उसका धर्म-कर्म-परायण परिवार
वि० सं० १६३४ से वि० सं० १७२१ पर्यन्त
राजस्थान की रियासतों में सिरोही-राज्य का गौरव और मान अन्य रियासतों से घटकर नहीं है। क्षेत्रफल और आय की दृष्टि से अवश्य सिरोही का मान द्वितीय श्रेणी की रियासतों में है। उदयपुर के राणाओं का मान
__ अगर यवन-सम्राटों को डोला नहीं देने पर ही प्रमुखतया आधारित है, तो सिरोही के सं० सीपा का वंश-परिचय
4 महारावों ने भी यवन-सम्राटों को डोला नहीं दिया और सदा राज्य और अपने वंश को संकट में डाले रक्खा । ऐसे गौरवशाली राज्य के वशंतपुर नामक ग्राम में, जो सिरोही नगर से थोड़े ही अन्तर पर आज भी विद्यमान है प्राग्वाटज्ञातीय सं० सदा अपने फल-फूले परिवार सहित रहता था। सं० सदा की स्त्री का नाम सहजलदेवी था । सहजलदेवी के पांच पुत्र थे । ज्येष्ठ पुत्र जयवंत था। सं० श्रीवंत, सं० सोमा, सं० सुरताण और सं० सीपा ये क्रमशः सं० जयवंत के छोटे भ्राता थे। इन सर्व में सं० सुरताण और सं० सीपा के परिवार अधिक गौरवान्वित और प्रसिद्ध हुये।
___ सं० सुरताण के दो स्त्रियाँ थीं, गउरदेवी और सुवीरदेवी । गउरदेवी के यादव नामक पुत्र हुआ। यादव का विवाह लाड़िगदेवी नामा कन्या से हुआ, जिसके करमचन्द्र नामक पुत्र हुआ । करमचन्द्र की स्त्री का नाम
- सुजाणदेवी था। सुजाणदेवी की कुक्षी से सं० मोहन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। सं० सुरताण का परिवार
"" सुवीरदेवी की कुक्षी से जयमल नामक पुत्र हुआ । जयमल का विवाह जमणादेवी से
मूलगंभारा में उत्तराभिमुख श्री आदिनाथप्रतिमा का लेखः
'संवत् १६४४ वर्षे फागण बदि १३ बुधे श्री सिरोहीनगरे महाराजश्रीसुरताणजीविजयीराज्ये । प्राग्वाटज्ञातीय वृद्ध० वसंतपुरवास्तव्य सं० सदा भार्या सहजलदे पुत्र सं० जयवंत सं० श्रीवंत सं० सोमा सं० सुरताण सं० सीपा भार्या सरूपदे पुत्र सं० आसपालेन सं० वीरपाल सं० सचवीर सं० आसपाल भार्या जयवंतदे पुत्र श्रांबा चौपा सं० वीरपाल भार्या विमलादे पुत्र मेहजलादि कुटुबयुतेन