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________________ २२ ] :: प्राग्वाट - इतिहास : प्रमुख रहते हैं । वि० सं० २००७ से आप श्री 'जैन देवस्थान - गोड़वाड़तीर्थ - वरकाणा' की जीर्णोद्धार समिति के सदस्य हैं । और भी आप इस प्रकार कईएक छोटी-मोटी संस्थाओं को अपना सहयोग दान करते रहते हैं । आपने दो बार श्री सिद्धाचलतीर्थ और गिरनारतीर्थों की, एक बार अर्बुदाचलतीर्थ की, दो बार अणहिलपुर-पत्तन की और दो बार श्री सम्मेतशिखरतीर्थ की यात्रायें की हैं। अतिरिक्त इनके अयोध्या, चम्पापुरी, पावापुरी, भागलपुर, हस्तिनापुरादि छोटे-बड़े अनेक तीर्थो की यात्रायें भी की हैं। आप जैसे समाजसेवी, शिक्षणप्रेमी, विद्यानुरागी हैं, वैसे ही व्यापारकुशल भी हैं। इस समय आप श्री 'गुलाबचन्द्रजी भभूतचन्द्रजी ', स्टे० राणी (मारवाड़) नाम की राणी मण्डी में अति प्रसिद्ध फर्म के, शाह दलीचन्द्र ताराचन्द्र, स्टे० राणी नाम की फर्म के और शाह रत्नचन्द्रजी कपूरचन्द्रजी नाम की मद्रास में अति प्रतिष्ठित फर्म के पांतीदार हैं। आपके तीनों ही पुत्र भी वैसे ही व्यापारकुशल एवं अति परिश्रमी हैं । ज्येष्ठ पुत्र श्री हिम्मतमलजी श्री गुलाबचन्द्रजी भभूतचन्द्रजी नाम की फर्म पर और श्री उम्मेदमलजी तथा श्री चम्पालालजी मद्रास की फर्म पर कार्य करते हैं। परिवार, मान, धन की दृष्टि से आप सुखी है। यहां पर समिति के सदस्यों में से नडूलाईवासी शाह सागरमलजी नवलाजी आपके लिए अधिक निकट स्मरणीय है । श्री सागरमलजी इतिहासविषय में अच्छी रुचि रखते हैं और फलतः श्री ताराचन्द्रजी को विचारविनिमय एवं परामर्श के अवसरों पर आपका अच्छा सहयोग एवं बल मिलता रहा है । I सांडेराव निवासी शाह चुन्नीलालजी सरदारमलजी का भी पुस्तकादि के संग्रह संबन्ध में आपको सर्वप्रथम सहयोग मिला, वे भी यहां स्मरणीय हैं । प्राग्वाट इतिहास के लिए अग्रिम ग्राहकों को बनाने में राणीग्रामनिवासी शाह जवाहरमलजी और खुडालाग्रामनिवासी शाह संतोषचन्द्रजी थानमलजी का आपको सदा तत्परतापूर्ण सहयोग मिलता रहा है । वे भी पूर्ण धन्यवाद के पात्र हैं । फर्म 'शाह गुलाबचन्द्रजी भभूतचन्द्रजी' भी अति धन्यवाद की पात्र है कि जिसने प्राग्वाट - इतिहास विषयक क्षेत्र में समय-समय पर कार्यकर्त्ताओं की सेवा सुश्रूषा करने में पूरा हार्दिक सद्भाव प्रकट किया है । यहां पर ही भाई श्री हीराचन्द्रजी का नाम भी स्मरणीय है । ये श्री ताराचन्द्रजी के पिता मेघराजजी के द्वितीय जेष्ठ भ्राता श्री लालचन्द्रजी के सुपुत्र श्री मालमचन्द्रजी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। श्री ताराचन्द्रजी के द्वारा 'श्री प्राग्वाट इतिहास- प्रकाशक-समिति' की ओर से होने वाले सारे पत्र-व्यवहार और इतिहास निमित्त प्राप्त अर्थ के आयव्यय का लेखा श्री ताराचन्द्रजी की आज्ञा एवं सम्मति से आप ही अधिकतः करते रहे हैं। अतिरिक्त इसके अन्य स्थलों पर भी ये ताराचन्द्रजी के सदा सहायक रहे हैं । इतिहास के लिए श्रम करने वालों में सदा उत्साही होने के नाते धन्यवाद के पात्र हैं। ता० ५-६ - ५२. भीलवाड़ा (राजस्थान) } लेखक दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद' बी० ए०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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