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________________ ७ ] :: प्राग्वाट-इतिहास :: [द्वितीय प्राग्वाटवंशावतंस मन्त्री-भ्राताओं के श्री नागेन्द्रगच्छीय कुलगुरुओं की परम्परा श्री महेन्द्रसूरि* श्री महेन्द्रसरिसंतानीय श्री शांतिसरि १. पाणंदमूरि २. अमरचन्द्रसूरि श्री हरिभद्रसूरि श्री विजयसेनसूरि श्री उदयप्रभसूरि स्त्रीरत्न अनोपमा के पिता चन्द्रावतीनिवासी ठ० धरणिग का प्रतिष्ठित वंश वि० सं० १२८७ विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में चन्द्रावती में प्राग्वाटज्ञातीय ठक्कुर सावदेव हो गया है। ठ, सावदेव का पुत्र ठ० शालिग हुआ और ठ० शालिग का पुत्र ठ० सागर हुआ। ठ० सागर के पुत्र का नाम ठ० गागा था । ४० गागा ठ० धरणिग का पिता और स्त्रीरत्न अनीपमा का पितामह था । ठ० गागा के ठ० धरणिग से छोटे चार पुत्र और थे-महं० राणिग, महं० लीला, ठ० जगसिंह और ठ० रत्नसिंह । ठ० धरणिग की स्त्री का नाम त्रिभुवनदेवी था। उसको तिहुणदेवी भी कहते हैं । त्रिभुवनदेवी के एक पुत्री अनुपमा और तीन पुत्र खीम्बसिंह, प्रांबसिंह और उदल नामक थे। *अ० प्रा० जै० ले० सं० ले. २५० श्लो०६६ से ७१ पृ० ६२ मुनिश्री जयंतविजयजी ने जगसिंह और रत्नसिंह को लीला के पुत्र होना माना है। अ० प्रा० ० ले० सं० ले. २५१ में उक्त व्यक्तियों के नाम निर्देशित हैं तथा पुत्र, भ्रात जैसे संबंधबोधक शब्दों से प्रत्येक नाम संयुक्त है। ठ० धरणिग का भ्राता महं० लीला था। लेख में उक्त पुरुषों का नाम लिखते समय लिखा है. 'तथा महं० लीलासुत महं० श्री लूणसिंह तथा भ्रातृ ठ० जगसिंह ठ० रत्नसिंहाना समस्तकुटुम्बेन' । जगसिंह रत्नसिह महं० लीला के भ्राता है, न की पुत्र ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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