________________
खण्ड ] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और उनका वैभव तथा साहित्य और धर्मसंबंधी सेवायें :: [ १५६
में कहीं स्वर्सकलश, कहीं तोरण, कहीं नववित्र स्थापित किये । पार्श्वनाथमंदिर के सामीप्य में दो प्रपा बनवाई।
डबोई में- वैद्यनाथमंदिर के शिखर पर स्वर्णकलश और सूर्यमूर्ति स्थापित की। तारंगगिरितीर्थ पर-दंडनायक तेजपाल ने श्री आदिनाथजिनबिंब सहित खत्तक बनवायी। नगरग्राम में ( मारवाड़-राजस्थान ) महा. वस्तुपाल द्वारा वि० सं० १२६२ अषाढ़ शु० ७ रविवार को एक राजुलदेवी की प्रतिमा और दूसरी रत्नादेवी की प्रतिमा संस्थापित करवाई गई।
गाणेसरग्राम (गुजरात) में महा० वस्तुपाल ने ग्राम में प्रपा बनवाई, गाणेश्वरदेव के मंडप के आगे तोरण बनवाया और प्रतोलीसहित परिकोष्ट विनिर्मित करवाया। ४-६४ (८४) सरोवर । ४८४ (२८४) लघुसरोवर (तलैया), इनमें अधिक प्रसिद्ध शत्रुजयतीर्थ पर बने हुए
ललितसर और अनूपसर तथा गिरनारतीर्थ पर बना हुआ कुमारदेवीसर है। विभिन्न मार्गों में १०० प्रपायें लगवाई। ७०० कुएँ खुदवाये । ४६५ वापिकायें बनवाई। शत्रुजयगिरि की तलहटी में ३२ वाटिकायें
और गिरनारगिरि की तलहटी में १६ वाटिकायें लगवाई। ५-१००२ धर्मशालायें विभिन्न तीर्थों, स्थानों में विनिर्मित करवाई। ६-७०० ब्राह्मणशालायें स्थापित करवाई, जहाँ ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र दान में दिये जाते थे और ७००
ब्राह्मणपुरियाँ निवसित करवाई। ७-७०० तापस-मठ बनवाये, जहाँ तपस्वी रहते थे और धर्माराधना करते थे। ८-६८४ पौषधशालायें बनवाई। इनमें व्रत, उपवास, आंबिल करने वालों के लिये तथा साधु-मुनिराजों के
ठहरने, आहारादि की विधिपूर्वक व्यवस्थायें रहती थीं। 8-५०० पांजरापोल बनवाई। इनमें रोगी, अपंग पशु रखे जाते थे और उनकी चिकित्सा की जाती थी। १०-७०० सदाव्रतशालायें खुलवाई गई थीं। इनमें से अधिक तीर्थों और तीर्थों के मार्गों में स्थापित थीं। ११-२५ (२१) समवशरण तीर्थों में विनिर्मित करवाये । १२-तोरण—तीन तोरण तीन लक्ष मुद्रायें व्यय करके शत्रुजयतीर्थ पर,
" , , , , , गिरनारतीर्थ पर,
दो , दो , , , खम्भात में बनवाये । १३-५०० सिंहासन (दांत एवं काष्ठमय) १४-५०५ रेशम के समवशरण, ५०५ जवाहिरविनिर्मित समवशरण, ५०५ हस्तिदंतचिनिर्मित समवशरण
तीर्थयात्राओं में साथ ले जाने के लिये तैयार करवाये गये थे। १५–२१ आचार्यपदमहोत्सव करवाये ।। १६-विभिन्न स्थानों में ५०० ब्राह्मण वेदपाठ करते थे, जिनको भोजन नित्य मंत्री भ्राताओं की ओर से मिलता था ।
महामात्य प्रतिवर्ष ३ वार संघपूजा करता था और २५ वार संघवात्सल्य करता था। सोमेश्वरमन्दिर पर उसने १००००००००) दश कोटि द्रव्य व्यय किया था, जैन और शैव देवालयों में ३०००
जै० ले० सं० (नाहरजीकृत) ले०१७१३-१४-८८ पु० प्र०सं०व० ते०प्र०पू०६५