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________________ लण्ड ] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गुर्जर-मंत्री वंश और उनका वैभव तथा साहित्य और धर्म संबंधी सेवायें :: [ १५७ धार्मिक विभाग और मंत्री भ्रताओं के द्वारा विनिर्मित धर्मस्थान और उनकी श्रागम-सेवायें यह विभाग दंडनायक तेजपाल की स्त्री अनोपमादेवी की अध्यक्षता में चलता था । अनोपमादेवी अपने कुलगुरु विजयसेनसूर के आदेश और उपदेश के अनुसार तथा अपने ज्येष्ठ महामात्य वस्तुपाल की आज्ञानुसार इस विभाग का संचालन करती थी । इस विभाग में सैकड़ों उच्च कर्मचारी और धार्मिक विभाग सहस्रों मजदूर कार्य करते थे । अर्बुद, गिरनार, शत्रुंजय, प्रभासपत्तन आदि प्रमुख तीर्थों में इस विभाग की शाखायें संस्थापित थीं । इस विभाग का कार्य था दक्षिण में श्री पर्वत, उत्तर में केदारगिरि, पूर्व में काशी और पश्चिम में प्रभाषतीर्थ तक के सर्व तीर्थों, धर्मस्थानों, प्रसिद्ध नगरों, मार्ग में पड़ने वाले वन, ग्रामों में धर्मशालायें स्थापित करना, वापी, कूप, सरोवर बनवाना, निर्माण समितियें स्थापित करना, नये मंदिर बनवाना, जीर्ण मंदिरों का उद्धार करवाना, नवीन बिंत्र स्थापित करना । महामात्य वस्तुपाल वर्ष में तीन बार संघ को निमंत्रित करता था। संघ की अभ्यर्थना करना भी इसी विभाग के कर्मचारियों का कर्तव्य था । यात्रा के समय साधु, मुनिराजों की यह ही विभाग सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करता था । महामात्य ने जो १२॥ (१३॥) संघ गिरनार और शत्रुंजयतीर्थ के लिये निकाले थे, उन सर्व संघों की योग्य व्यवस्था करना भी इसी विभाग का कार्य था । यह विभाग सब ही धर्मों का मान करता था । इस विभाग ने सब ही धर्मानुयायियों के लिये मंदिर, मस्जिद, भोजनशालायें, धर्मशालायें, बनवा कर अभूतपूर्व सेवायें की हैं। निर्माण कार्य सुव्यवस्थित एवं नियंत्रित था । गिरनार और शत्रुंजयतीर्थ पर होने वाले निर्माण कार्य विशेषतया महामात्य वस्तुपाल और उसकी स्त्री ललितादेवी की देख-रेख में होते थे । अर्बुदगिरि पर लूणसिंहवसहिका का निर्माण दंडनायक तेजपाल और नोपमा की देख-रेख में होता था । इस विभाग ने जो धर्मकृत्य किये उनका संक्षिप्त व्ययलेखा इस प्रकार है । धर्म संबंधी विवध कार्यों में मंत्री ताओं ने लगभग रु० ३००१४१८८००) व्यय किये थे । रु० १८६६०००००) नवीन बिंबों के बनवाने में । रु० १८६६०००००) शत्रुंजयतीर्थ पर | रु० १२५३०००००) अषु दगिरि पर । रु० १८५३०००००) अथवा १८८०००००० ) अथवा १२८३०००००) गिरनारतीर्थ पर | रु० १३०००००) अथवा ६४०००००) व्यय करके तोरण बनवाये । रु० १८०००००००) व्यय करके जैन और शैव पुस्तकें लिखवाई' । रु०३०१४१८८००) का अन्य साधारण व्यय । कुछ धर्मकृत्यों का विवरण इस प्रकार है: १ – नवमन्दिरों का निर्माण - १३०४ (१३१३) जैन मन्दिर, ३०२ (३००२) ३२०० ) शिवमंदिर, ६४ (८४) मस्जिद 'श्रीवस्तुपालस्य दक्षिणस्यां दिशि श्री पर्वतं यावत्, पश्चिमायां प्रभासं यावत्, उत्तरस्या केदार पर्वतं यावत्, पूर्वस्यां वारणारसीं यावत्, तयोः कीर्त्तनानि । सर्वाग्रेण त्रीणि कोटिशतानि चतुर्दशलक्षा अष्टादशसहस्राणि अष्टशतानि द्रव्यव्ययः ।' प्र० को ०व०प्र० १५६ ) पृ० १३०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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