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साद] : मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और उनका वैभव तथा साहित्य और धर्म-संबंधी सेवायें :: [ १४५
बाल्हण -इसका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'मुक्तिमुक्तावली है। शोभन—अर्बुदगिरिस्थ लूणसिंहवसति का बनाने वाला प्रसिद्ध शिल्पविज्ञ ।
समाश्रित प्राचार्य, साधु और उनका साहित्य
विजयसेनरि—ये महामात्य के धर्मगुरु होने से अधिक सम्मानित थे। ये नागेन्द्रगच्छीय हरिभद्रसरि के शिष्य थे।
धार्मिक विभाग के भी ये ही अधिष्ठाता थे । विद्वान् भी उच्चकोटि के थे । इनका लिखा हुआ 'रेवंत
गिरिरासु' इतिहास की दृष्टि से एक महत्त्व का ग्रन्थ है। उदयप्रभसूरि-कुलगुरु विजयसेनसरि के ये शिष्य थे। संस्कृत, प्राकृत के ये प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनके लिखे
प्रसिद्ध ग्रन्थ ये हैं:(१) 'धर्माभ्युदय' (संघपतिचरित्र)-इसमें शत्रुजयादि तीर्थों के लिये संघ निकालने वाले संघपतियों का
जीवन-चरित्र संक्षिप्त रूप से लिखा है । (२) 'उपदेशमालाकर्णिका'-यह एक टीका ग्रंथ है जो धर्मदासगणिकृत 'उपदेशमाला ग्रंथ' पर वि० सं०
१२६६ में धवलकपुर में लिखी गई है। (३) 'नेमिनाथ-चरित्र'-वि० सं० १२६६ । (४) 'आरम्भ-सिद्धि'-यह ज्योतिष ग्रंथ है । (५) सं० १२६८ में लिखी गई वस्तुपाल तेजपाल की गिरनारतीर्थ की प्रशस्तियों में एक लेख इनका
भी है। छोटे-मोटे अनेक लेख और प्रशस्तियाँ उपलब्ध हैं, जो इनको उच्च कोटि के विद्वान् होना
सिद्ध करती हैं । 'सुकतकीर्तिकल्लोलिनी' नामक अति प्रसिद्ध प्रशस्ति काव्य भी इनका ही लिखा हुआ है। अमरचन्द्रसूरि—ये 'विवेकविलाश' के कर्ता वायड़गच्छीय सुप्रसिद्ध जिनदत्तसूरि के शिष्य थे। संस्कृत, प्राकृत के
महान् विद्वान् थे। इन्होंने छंद, अलंकार, व्याकरण, काव्य आदि अनेक विषयक ग्रन्थ लिखे हैं। महाकवि अरिसिंह से इन्होंने काव्य-रचना सीखी थी। इनके रचे हुये प्रसिद्ध ग्रन्थ इस प्रकार हैं:१-बालभारत, २-काव्यकल्पलता (वृत्तिपरिमल सहित), ३-अलंकारवोध, ४-छंदोरत्नावली, ५
स्यादिशब्दसमुच्चय, ६-पद्मानन्दकाव्य, ७-सुक्तावली, ८-कलाकलाप, 8-कविशिक्षावृत्ति (टीका) नरचन्द्रसूरि – ये हर्षपुरीय अथवा मलधारीगच्छ के देवप्रभसूरि के शिष्य थे। वस्तुपाल इनका अत्यधिक सम्मान
करता था । संस्कृत, प्राकृत के प्रकांड विद्वान् होने के अतिरिक्त ये ज्योतिष के विशिष्ठ विद्वान् थे। इनके लिखे हुये ग्रंथ इस प्रकार हैं:१-कथारत्नाकर, २-ज्योतिषसार ( नारचन्द्रज्योतिषसार ), ३-अनर्घराघवटिप्पन, ४-प्रश्नशत, ५-ज्योतिषप्रश्नचतुर्विंशिका, ६-प्राकृतप्रबोध-व्याकरण, ७-(जिनस्तोत्र) ८-अनधराघवनाटकटीका, ह-सं० १२८८ की वस्तुपाल तेजपाल सम्बन्धी गिरनारतीर्थ की प्रशस्तियों में दो लेख इनके