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________________ खरडत :: प्राचीन गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसति :: की पंक्ति में एक ओर भगवान् की प्रतिमा और दूसरी ओर एक कायोत्सर्गिक प्रतिमा खुदी हैं । पश्चिम दिशा की पंक्ति में एक कोण में दो साधुओं की आकृतियाँ हैं। तत्पश्चात् आसनारूढ़ आचार्य उपदेश दे रहे हैं । उनके सामीप्य में स्थापनाचार्य और श्रोतागणों का देखाव है। द्वितीय मण्डप (१४) के नीचे की पश्चिम दिशा की पंक्ति के मध्य में तीन साधु खड़े हैं, एक श्रावक अभुट्टिो खमा रहा है, अन्य श्रावक हाथ जोड़ कर खड़े हैं। पूर्व दिशा की पंक्ति के मध्य में दो साधु खड़े हैं और उनको एक तीसरा साधु पंचाँग नमस्कारपूर्वक अब्भुट्ठिो खमा रहा है, अन्य श्रावक हाथ जोड़ कर खड़े हैं। इसके पास ही एक दृश्य में एक हाथी मनुष्यों का पीछा कर रहा है और वे भाग रहे हैं। दे० कु. ६-प्रथम मण्डप (१५) में पंच-कल्याणक का दृश्य है। प्रथम वलय में जिनप्रतिमायुक्त समवशरण, द्वि० वलय में च्यवन-कल्याणक अर्थात् माता पलंग पर सोती हुई चौदह स्वप्न देख रही है, जन्मकल्याणक अर्थात् इन्द्र भगवान् को गोद में लेकर जन्माभिषेक-महोत्सव कर रहे हैं, दीक्षा-कल्याणक अर्थात् भगवान् खड़े २ लोच कर रहे हैं, केवलज्ञान-कल्याणक अर्थात् समवशरण में बैठे हुये भगवान् देशना दे रहे हैं। दूसरे वलय में भगवान् कायोत्सर्ग-अवस्था में ध्यान कर रहे हैं अर्थात् मोक्ष सिधारे हैं। तीसरे वलय में राजा, हाथी, घोड़े, रथ और मनुष्यों की आकृतियाँ हैं । द्वि० मण्डप में आधार-पट्टियों में चारों ओर सिंह-दल और काचलाकृतियाँ बनी हैं । दे० कु. १०-प्रथम मण्डप (१६) में श्री नेमिनाथ-चरित्र का दृश्य है । प्रथम वलय में श्री नेमिनाथ के साथ श्री कृष्ण और उनकी स्त्रियों की जल-क्रीड़ा का दृश्य । द्वि० वलय में श्री नेमिनाथ का श्रीकृष्ण की आयुधशाला में जाना, शंख बजाना और श्री नेमिनाथ एवं श्रीकृष्ण की बल-परीक्षा, तृ. वलय में राजा उग्रसेन, राजिमती, चौस्तम्भी (चौरी), पशुओं का बाड़ा, श्री नेमिनाथ की बरात, श्री नेमिनाथ का लौटना, दीक्षा-उत्सव समारोह, दीक्षा एवं केवलज्ञान-उत्पत्ति के दृश्य दिखलाये गये हैं। द्वि० मण्डप की आधार-पट्टियों में हस्तिदल और काचलाकृतियाँ हैं । इस देवकुलिका के द्वार के बाहर बाँयी ओर दिवार में (१७) वर्तमान् चौवीसी के १२० कल्याणकों की तिथियाँ, चौबीस तीर्थङ्करों के वर्ष, दीक्षातप, केवलज्ञानतष तथा निर्वाणतपों की तिथिसूची-पट्ट लगा है। दे०कु०११-इस देवकुलिका के द्वार के बाहर दोनों ओर द्वार-चतुष्कट, स्तम्भ और इनके मध्य के अन्तर भाग में अति सुन्दर शिल्पकाम है। प्रथम मण्डप में चौदह हाथ वाली (१८) देवी की मनोहर मूर्ति बनी है और द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ और अश्वदल का दृश्य है। दे० कु. १२-प्रथम मण्डप में शान्तिनाथ-प्रभु के पूर्वभव के मेघरथ राजा के रूप से सम्बन्धित कपोत और बाज का दृश्य तथा पंचकल्याणक का दृश्य अङ्कित है । (१६) गुम्बज के नीचे की चारों दिशाओं की चारों पट्टियों के मध्य में एक-एक जिनप्रतिमा और उसके आस-पास में पूजा-सामग्री लिये हुये श्रावकगणों की मूर्षियाँ खुदी हैं । द्वि० मएडप में हस्तिदल है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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