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खण्ड ]
:: प्राचीन गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसति ::
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दूसरी ओर तक्षशिला नगर (६ B) के दृश्य में क्रमशः पुत्री जशोमती और रण करने के लिये प्रस्थान करती हुई चतुरंगिणीसैन्य, सेनापति सिंहरथ, हाथी पर कुँ सोभयश, अन्य हाथी पर मंत्री बहुलमति, पालकी में अंत:पुर की स्त्रियां, जिनमें प्रमुखा स्त्री-रत्न सुभद्रा और तत्पश्चात् हाथी, घोड़े, रथ और पैदलसैन्य का दर्शन है। प्रत्येक मूर्ति और प्रदर्शन पर अपने २ नाम लिखे हैं। एक रथ में रणवस्त्रों से सुसज्जित होकर एक पुरुष बैठा है, सम्भव है वह स्वयं बाहुबली है । इस पर नाम नहीं है (६c) रणक्षेत्र का दृश्य है। एक मृत मनुष्य पर अनिलवेग और दूसरे मनुष्य पर सेनापति सिंहरथ, पाटहस्ति विजयगिरि पर बैठा हुआ आदित्यजस, घोड़े पर बैठा हुआ सुवेगदत की आकृत्तियां बनी हैं। सब पर अपने २ नाम खुदे हुये हैं। तत्पश्चात् द्वंद्वरण का दृश्य है (६D), दो पंक्तियों में भरत, बाहुबली के बीच हुआ छः प्रकार का युद्ध-दृश्य-दृष्टियुद्ध, वाक्युद्ध, बाहुयुद्ध, मुष्टियुद्ध, दंडयुद्ध, चक्रयुद्ध अंकित हैं और प्रत्येक युद्ध-दृश्य पर उसका नाम लिखा है—जैसे भरतेश्वर-बाहुबली-दृष्टियुद्ध इत्यादि। .
उपरोक्त दृश्य के पश्चात् कायोत्सर्गावस्था में बाहुबली का तप करने, लताजाल से आवृत्त होने, ब्राह्मी, सुन्दरी की बाहुबली को समझाती हुई मुद्राओं में मूर्तियाँ, बाहुबली को केवल ज्ञान और उसके पास ही पुनः व्रतिनी बांभी (ब्रामी) सुन्दरी की मूर्तियाँ आदि दृश्य (६E) खुदे हुये हैं और प्रत्येक पर नाम लिखा है ।
___ उपरोक्त दृश्य के पश्चात् भगवान् ऋषभदेव के तीन गढ़, चौमुखजी सहित समवशरण की रचना का दृश्य (६F) है । जानवरों के कोष्ट में 'मंजारी-मूषक, सर्प-नकुल, सिंह-वत्स सहित गौ और सिंह तथा श्राविकाओं के कोष्ठ में सुनन्दा, सुमंगला, तत्पश्चात् पुरुषसभा और ब्राह्मी और सुन्दरी की विनय करती हुई खड़ी मूत्तियाँ और भगवान् की प्रदक्षिणा करते हुए भरत चक्रवर्ती की मूर्ति के दृश्य खुदे हैं। एक ओर अंगुली को देखते हुए भरत महाराज को केवलज्ञान होने का देखाव है और उनको रजोहरण प्रदान करते हुये देवों की मूर्तियों के दृश्य अंकित हैं।
इस गुम्बज के पास में जो सभामण्डप का तोरण पड़ता है, उसमें उसके मध्य भाग में दोनों ओर भगवान् की एक प्रतिमा खुदी है।
(७) उपरोक्त गुम्बज के दक्षिण पक्ष पर आये हुये गुम्बज की चतुर्दिशी नीचे की पट्टियों में से पूर्व दिशा की पट्टी में एक जिनप्रतिमा और दोनों कोणों में आसनस्थ दो गुरु-मूर्तियाँ खुदी हुई हैं । पास में पूजा-सामग्री लिये श्रावकगण खड़े हैं। उत्तर दिशा की पट्टी में भी एक जिनप्रतिमा खुदी है। दक्षिण दिशा की पट्टी में तीन स्थानों पर सिंहासनारूढ़ राजा अथवा कोई प्रधान राजकर्मचारी बैठे हैं और उनके पास में सैनिकगण आदि मूर्तित हैं। पश्चिम दिशा की पट्टी में मल्लयुद्ध का दृश्य है। गुम्बज के मध्य में चतुर्विंशति कोण वाली काचलामयी रचना है । प्रत्येक कोण की नोंक पर हाथ जोड़ी हुई एक-एक मूर्ति खुदी है ।
(८) उत्तर पक्ष पर बने गुम्बज के नीचे की चतुर्दिशी पट्टियों में राजा, सैनिक आदि के दृश्य हैं। उत्तर दिशा की पट्टी में आसनारूढ़ आचार्य की, उनके पास में दो खड़े श्रावकों की, ठवणी और पश्चात् बैठे हुये श्रावक लोगों की मूर्तियां खुदी हैं।
उपरोक्त दृश्य ६A, ६B, C, D,
E, GF से दिखाये गये हैं।