SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ as ] :: प्राचीन गूर्जर - मंत्री-वंश और अबुदाचलस्थ श्री विमलवसति :: [ at केन्द्र दण्डहीन है । इस मण्डप में आठ देवियों की नाट्यमुद्रायें हैं। वृत्तों के आधार में वायव्य कोण में एक ध्यानस्थ जिन बिंबा कृति है, जिसके आस-पास श्रावक पूजोपकरण लेकर खड़े हैं। इसके सामने आग्नेय कोण में दूसरी और एक आचार्य आसन पर बैठे हैं। उनको एक शिष्य साष्टांग नमस्कार कर रहा है, श्रावक हाथ जोड़ कर खड़े हैं। अवशिष्ट भाग में संगीत और नृत्य के पात्र हैं । इस आधार - वृत्ताकार पट्टी के बाहिर चारों कोणों में एक-सी आकृति की चार सुन्दर देवी- श्राकृतियाँ हैं, जिनके पास में पुप्पमालादि लिये हुये अन्य आकृतियाँ हैं । २. नवचौकिया के वायव्य कोण में बना हुआ मण्डप भी काचलागर्भित ऐकेन्द्रिक वृत्तों से बना है । केन्द्र में लटकता हुआ दण्ड है । दण्ड में, वृत्ताधार में, नीचे की चतुर्दिशी पट्टियों के चारों कोणों में अभिनय करती कृतियाँ और अनेक सुन्दर देवी आकृतियाँ हैं । ३. यह मण्डप भी काचलागर्भित ऐकेन्द्रिक वृत्तों से बना है। नीचे की चतुर्दिशी पट्टियों और उनके कोणों में अनेक देवी आकृतियाँ हैं । ४. यह मण्डप त्र्येकैन्द्रिक वृत्ताकार है, केन्द्र में कलाकृति है । इसके प्रथम वलय में पैदल सैन्य, द्वि० वलय में अश्वारोहीदल और तृ० वलय में हस्तिशाला का देखाव है । नीचे की चतुर्दिशी पट्टियों के भीतर की ओर आग्नेय कोण में अभिषेकसहित लक्ष्मीदेवी की आकृति और वायव्य कोण में दो हाथियों का युद्ध-दृश्य है । ५. यह भी काचलायुक्त ऐकैन्द्रिक वृत्तों से बना है । केन्द्र और द्वितीय वलय के प्रत्येक काचले में दण्ड हैं। केन्द्र के दण्ड में, प्रथम वलय में और द्वितीय वलय के दो-दो दण्डों के मध्य में अभिनय करती आठ देवीआकृतियाँ हैं, जो आधार-वलय में चैत्यवंदन करती स्त्री-मुद्राओं के पृष्ट भागों पर स्थित पट्टों पर आरूढ़ हैं । आधारवलय के बाहर चतुर्दिशी पट्टियों के भीतर की ओर उनके कोणों में हाथी, घोड़े आदि वाहनयोग्य पशु-आकृतियाँ हैं, जिनकी नंगी पीठों पर मनुजाकृतियाँ हैं । ६. काचलायुक्त त्र्येकैन्द्रिक वृत्तमयी यह मण्डप है । द्वितीय और तृतीय वलयों में बतकों की पंक्तियाँ और आधारवलय में अलग-अलग प्रासादों में बैठी हुई देवी आकृतियाँ हैं । 1 ७. इस मण्डप की छत में कल्प वृक्ष का देखाव है । इसके नीचे की चतुर्दिशी आधार शिलापट्टियों पर प्रासादस्य अनेक देवी- श्राकृतियाँ खुदी हैं तथा इसके नीचे के तल पर काचलाकृतियाँ हैं । ८. काचलायुक्त त्र्येकैन्द्रिकवृत्तमयी यह मण्डप है । केन्द्र में दण्ड है। चारों दिशाओं में स्त्री-आकृतियों के पृष्ठ भागों पर रक्खी हुई पट्टियों के ऊपर अभिनय करती देवी आकृतियाँ तथा आधारवलय में भी देवीभाकृतियाँ हैं । ६. इस मण्डप में केवल वृत्तों में अर्ध-गोल खण्ड अर्थात् अतिसुन्दर काचलों का संयोजन है । उपरोक्त मण्डपों के वर्णन से मण्डपों की भीतरी रचना दो प्रकार से अधिक होती सिद्ध होती है-वलयाकृत और भुजाकृत । ऐकैन्द्रिक वृत्त - एक हो बिन्दु पर एक से अधिक वृत्त अलग परिधि के बने हों वे ऐकेन्द्रिक वृत्त कहलाते हैं ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy